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गुगल बाबा

इंडी ब्लागर

 

बूँद को सागर में ही रहने दो


क्या प्रलय
एवं स्थिति में
मात्र
एक बूँद का
फासला है
कांप जाता हूँ
किसी अनिष्ट की
आशंका से
जब डबडबाती है
तेरी आँखें
ब्रह्माण्ड में घूमता हुआ
"हैल्बाप"
भीतर तक डरा जाता है,
यदि टपक जाए
तो धरती
रसातल में चली जायेगी
संतुलन बिगड़ जाएगा
सभी आकर्षण में बंधे हैं
बंधे हैं ,जाने अनजाने बन्धनों में
सूर्य का आकर्षण बाँध लेता है सबको
सभी छोटे बड़ों को
जीवन एवं मृत्यु का
यह निकट का फासला है
बूँद
जीवन/मृत्यु है
मर्यादा के बंधन से
इसे निकलने ना देना
वरना
इस महाप्रलय की
महाविनाश का बोझ लेकर
तुम भी जी न सकोगे
बूँद को सागर में ही रहने दो
आपका
शिल्पकार
(फोटो गूगल से साभार)

Comments :

2 टिप्पणियाँ to “बूँद को सागर में ही रहने दो”
ओम आर्य ने कहा…
on 

वाह क्या कल्पना है ........एक बेहद ही खुबसूरत परिकल्पना से कृतज्ञ कर दिया .........अतिसुन्दर

अपूर्व ने कहा…
on 

व्यष्टि और समष्टि के रिश्ते की बड़े दार्शनिक ढंग से व्याख्या की है अपने..अनूठे प्रयास के लिये बधाई.

 

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