जब से तुम मेरे मीत हो गए
मेरी सरगम के संगीत हो गए
बजते रहते हैं मेरे कानों में नित
तुम्हारे बोल जैसे गीत हो गए
सितारा टूटता है जमीं को पाने के लिए
जमीं तरसती है उसे बसाने के लिए
जान देकर ही सितारा जमीं पर आता है
प्रियतम की बाँहों में मर जाने के लिए
आरजू लिए फिरते रहे उनको पाने की
हवा का रुख देखते रहे ज़माने की
सारी तमन्नाएँ धरी की धरी रह गयी
जब घडी आ ही गयी जनाजा उठाने की
पलकों के किनारों से आंसू झरते हैं
इनकी छाँव में प्यार के सपने पलते हैं
तुम लड़ जाना भीषण तूफानों से भी
जहाँ चाह हो वहीँ रास्ते भी निकलते हैं
आपका
शिल्पकार
(फोटो गूगल से साभार)
जब से तुम मेरे मीत हो गए
ब्लॉ.ललित शर्मा, शुक्रवार, 11 सितंबर 2009
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बहुत बेहतरीन गीत!
आपकी लेखन शैली का कायल हूँ. बधाई.
यही है जीवन संगीत.
बहुत सुन्दर अभिव्यक्तियां हैं इस ब्लाग में, आपका यह प्रयास भी स्तुत्य है. आभार.