एक निष्प्राण में
नए जीवन का
संचरण था
बुझते दीपक में
एक नई उर्जा का
अवतरण था
बरसों से जंग लगी
स्वझरनी की नींद खुली
वह कहने लगी
पहले से मुखर होकर
प्रखर होकर
कुछ अपने पन का
पारदर्शी अहसास
परिष्कृत कर गया मुझे
जनम गई इसके गर्भ से
कुछ कालजयी कृतियाँ
तेरे आने से
प्रेरणा की अदृश्य तरंगों ने
चेतना को झकझोर दिया
तेरे सामीप्य ने आकाश में
वासंती रंग भर दिए
वातावरण रात रानी की
महक से सराबोर था
काली नगीन मस्त होकर
झूम रही थी / सहसा
तेरे छलकते नैनों ने
भरम तोड़ दिया
देने से पहले
लेने वाले
तुम भी निकले
आपका
शिल्पकार
(फोटो गूगल से साभार)
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