आज एक मई श्रमिक दिवस है, श्रम शील हाथों को समर्पित एक पुरानी रचना पेश कर रहा हुँ। आशा है कि आपको पसंद आएगी।
दुनिया बनाई देखो उसने कितना वह मजबूर था
एक जून की रोटी को तरसा मेरे देश का मजदूर था
चंहु ओर हरियाली की देखो एक चादर सी फैली है
यही देखने खातिर उसने भूख धूप भी झेली है
अपने लहू से सींचा धरा को वह भी बड़ा मगरूर था
एक जून की रोटी को तरसा मेरे देश का मजदूर था
महल किले गढ़े हैं उसने, बहुत ही बात निराली है
पसीने का मोल मिला ना पर खाई उसने गाली है
सर छुपाने को छत नहीं है ये कैसा दस्तूर था
एक जून की रोटी को तरसा मेरे देश का मजदूर था
पैदा किया अनाज उसने, पूरी जवानी गंवाई थी
मरकर कफ़न नसीब न हुआ ये कैसी कमाई थी
अपना सब कुछ दे डाला था दानी बड़ा जरूर था
एक जून की रोटी को तरसा मेरे देश का मजदूर था
आपका
शिल्पकार
महल किले गढ़े हैं उसने, बहुत ही बात निराली है
पसीने का मोल मिला ना पर खाई उसने गाली है
मजदूरों और श्रमिकों की दशा और उसके हिस्से में आये दर्द को बखूबी बयान किया है आपने.
सुन्दर रचना
एक दम यथार्थ रचना के लिए बधाई!
बहुत सुंदर लिखा है .. मजदूरों की वास्तविक दशा का चित्रण करती रचना !!
मज़दूर की व्यथाकथा का यथा वर्णन, बहुत ही सुन्दर भाव
पैदा किया अनाज उसने, पूरी जवानी गंवाई थी
मरकर कफ़न नसीब न हुआ ये कैसी कमाई थी
अपना सब कुछ दे डाला था दानी बड़ा जरूर था
एक जून की रोटी को तरसा मेरे देश का मजदूर था
बहुत सुंदर !
कल एक रिपोर्ट बनाई थी...
मुंबई में प्रति व्यक्ति आय देश में सबसे ज़्यादा यानि एक लाख अट्ठाईस हज़ार रुपये सालाना है...
उसी मुंबई में मजदूरों की स्लम बस्ती धारावी में 1440 लोगों पर एक शौचालय है...एक वर्ग किलोमीटर के इलाके में दस लाख लोग रहते हैं...मुंबई की 54 फीसदी आबादी स्लम में रहती है...बारह लाख लोगों की आमदनी रोज़ 20 रुपये से भी कम है...
ये उसी मुंबई के आंकड़े हैं जहां दुनिया के चौथे नंबर के रईस मुकेश अंबानी भी रहते हैं...
वाकई मेरा भारत महान...
जय हिंद...
एक जून की रोटी को तरसा मेरे देश का मजदूर था
Sigh !
दुनिया बनाई देखो उसने कितना वह मजबूर था
एक जून की रोटी को तरसा मेरे देश का मजदूर था
-एकदम सही कहा!
श्रमिकों की शोचनीय दशा को दर्शाती आपकी कविता वाकयी बहुत अच्छी बन पड़ी है...लेकिन मजदूरों की ऐसी दशा गाँव-देहात में तो हो सकती है यहाँ दिल्ली जैसे शहरों में नहीं...यहाँ के ज़्यादातर मजदूर बहुत पैसा कमाते हैं(कई बार पढ़े-लिखे लोगों से भी ज्यादा) और चाहें तो अपना जीवन स्तर सुधार भी सकते हैं और सुधार भी रहे हैं|
इनकी बुरी आदतें जैसे रोज नशा करना....मीट-मुर्गा ...दारु...अय्याशी ...इन्हें ऊपर उठाकर अपना जीवन संवारने नहीं देती
"एक जून की रोटी को तरसा मेरे देश का मजदूर था"
तरसा था? आज भी तो तरस रहा है।
अवधिया जी की बात सही है .. सिर्फ था ही नहीं है भी .. आगे रहे नहीं .. ऐसी प्रार्थना की जानी चाहिए !!
अरे हां, आज तो मजदूर दिवस है।
जब मजदूरों की रोटी ये भूखे नंगे नेता और मंत्री खायेंगे तो मजदूरों का यही हाल होगा / मजदूरों की दयनीय स्थिति को चित्रित और उस पर सार्थक विवेचना करती आपके इस रचना को सरकार में बैठे निति निर्माताओं को पढना चाहिए /
mazdooron k paksh men likhanaahi sahitykaar ka dharm hai. aur shilpkar ko to likhanaa hi chahiye. sundar-lalit-rachanaa k liye badhai.
सुंदर पंक्तियां।
सत्य सटीक और सामयिक रचना के लिये आभार.
रामराम.
मजदूरों की वास्तविक दशा का चित्रण करती रचना !!
दुनिया बनाई देखो उसने कितना वह मजबूर था
एक जून की रोटी को तरसा मेरे देश का मजदूर था
बहुत-बहुत सुन्दर रचना.
वाह वाह ललित भाईजबाब नही, बहुत ही सुंदर रचना.
धन्यवाद
अपना सब कुछ दे डाला था दानी बड़ा जरूर था
एक जून की रोटी को तरसा मेरे देश का मजदूर था
.... बेहद प्रसंशनीय रचना ... मजदूर और मजदूर दिवस ...!!!
यथाथ को दर्शाती रचना।
बेहतर रचना...भाईजान....
दुनिया बनाई देखो उसने कितना वह मजबूर था
एक जून की रोटी को तरसा मेरे देश का मजदूर था
वाह.....वाह.....
दुनिया बनाने वाले क्या तेरे दिल में समाई
तुने काहे को दुनिया बनाई ......
पैदा किया अनाज उसने, पूरी जवानी गंवाई थी
मरकर कफ़न नसीब न हुआ ये कैसी कमाई थी
अपना सब कुछ दे डाला था दानी बड़ा जरूर था
एक जून की रोटी को तरसा मेरे देश का मजदूर था
मन को झकझोर देने वाली पंक्तियाँ...ये दुखद स्थिति बदलनी चाहिए
wah bhai wah....vicharniya rachna...
मार्मिक.....सच बहुत ही दर्दनाक स्थिति है...
majduur diwas par ही तो hmen unkii majbuurii yaad aatii है
अब dekhiye unke लिए koii अच्छी yojnaa ban hi नहीं paa रही
waise तो puuraa देश ही raam bharose है
जन्मदिवस की शुभकामना के लिए आपको बहुत धन्यवाद.
sundar satya se rubroo karavati rachana ke liye badhai