बारूद का एक ढेर है अपनी तबाही के लिए ,
मुफलिस-ऐ-मोह्हबत के तारीख-ऐ-निशां नही होते,
ये शगल तो है सिर्फ़ जिल्ले इलाही के लिए,
मै तडफता रहा वहां जाम-ऐ-महफ़िल सजती रही,
नए बुत तराशे जाते रहे तख्त-ऐ-शाही के लिए
मेरी मुमताज़ ताजमहल मै भी बनवा सकता था
कैसे किसे पेश करूँ अब तेरी गवाही के लिए,
इश्क के आगाज़ पर अंजाम न सोचा था "ललित"
वरना क्योंकर तैयार होता अपनी तबाही के लिए,
आपका
शिल्पकार,
(फोटो गूगल से साभार)
मुफलिस-ऐ-मोह्हबत के तारीख-ऐ-निशां नही होते,
ये शगल तो है सिर्फ़ जिल्ले इलाही के लिए,
बेहतरीन भावाभिव्यक्ति ....!!
मेरी मुमताज़ ताजमहल मै भी बनवा सकता था
कैसे किसे पेश करूँ अब तेरी गवाही के लिए,
लाजबाब !
Bahut sundar gazal hai.
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
Bahut sundar gazal hai.
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }