लौट आए हैं गांव में भेडिये एक बार फ़िर
आदमी से भेडिया बन गया है इन्सान फ़िर
स्याह रातों में पहचानना है बड़ा मुस्किल
सफेदपोश बन गया है एक बार शैतान फ़िर
वो नोच-नोच कर लहुलुहान कर गया मुझे
वो लौट कर आ गया है एक बार हैवान फ़िर
कल तक दम उखड रहा था जिस साँप का
गलियों में घूम रहा है एक बार जवान फ़िर
जिसके हाथ में सौंपी थी मैंने हवेली की चाबी
आज आँखे दिखा रहा है एक बार बेईमान फ़िर
आपका
शिल्पकार
(फोटो गूगल से साभार)
लेखनी प्रभावित करती है.