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ओ महाकाल -- अम्बर का आशीष से ----- ललित शर्मा

संत पवन दीवान जी ने अपनी एक कविता " ओ महाकाल " अपने काव्य संकलन "अम्बर का आशीष" के विमोचन के अवसर पर सुनाई थी। उन्होने कहा कि आज राष्ट्रीय एकता की आवश्यकता है, छोटी-छोटी एकता मिलकर बड़ी एकता बनती है। इस कविता का पॉडकास्ट सुनिए।

ओ महाकाल



ओ महाकाल तुम कब दोगे
जीने के लिले हमें दो क्षण
हम किस पृथ्वी पर बैठे हैं
पांवों में क्यों भर रहा गगन

उड़ने वाले चेहरे किसके
सूने में लटके हाथ
यह अंतहीन पथ किसका है
अंकित हैं छोड़े हुए साथ

आँखें ही आँखें हैं उपर
केवल आँखे ही आँखे हैं
कुछ मांस अस्थियाँ नहीं शेष
उतराती टूटी पांखे हैं

ये निष्फ़ल खड़ी याचनाएं
दरवाजों पर क्यों टूट रही
कांचों ने पत्थर तोड़ दिए
खिड़कियाँ हवाएं लूट रही है

चर मर करती कुर्सियाँ हाय
यह देश बैठता जाता है
जितना हर धागे को खोलो
उतना ही ऐंठता जाता है

कुछ राष्ट्र देवता को समेट कर
हर पत्थर में समा गए
अपने वंशों की पुस्तक पर
संस्करण दूसरा जमा गए

रास्ते पर पड़ा एक चेहरा
कितना निर्जन कितना उदास
वह किसका है,कुछ पता नहीं
परिचय को कोई नहीं पास

उसकी नहीं जरुरत कोई
इस पगलाई हुई भीड़ में
पत्नी बच्चे लटक रहे हैं
मंहगाई के किसी चीड़ में

किन राहों में चप्पलें फ़टी
जुड़ते-जुड़ते गल गए हाथ
आँखे हैं पर पुतलियाँ नहीं
खाई-खाई बंट गया ग्राम

वह देह नहीं है प्राण नहीं
केवल विनाश का सड़ा शेष
है कहाँ मेरे तन के नक्शे
कैसा है अपना जन्म देश

जिन्दगी जिसे तुम कहते हो
जिसको तुम कहते रहे प्यार
उस चेहरे का हो सका नहीं
कोई दर्पण एक बार

अब तक पड़ा हुआ वह चेहरा
हर आकृति को कराहता है
लेकिन उसकी जीभ नहीं है
कहता नहीं क्या चाहता है

लेकिन मुझे पता है सब कुछ
वह हम सबको श्राप रहा है
कितना बड़ा देश है उसका
वह पलकों से नाप रहा है

पड़ा रह गया वहीं चेहरा
तो चौराहा जल जाएगा
उसके रिसते हुए दर्द से
हृदय देश का गल जाएगा

रुक जाओ कुछ और देख लो
शायद कोई उसे उठा ले
विस्फ़ोटों का सुत्र काट कर
सब चेहरों का नाश बचा ले

पवन दीवान
ग्राम किरवई (राजिम)
जिला रायपुर छत्तीसगढ

शोषण की रोशनी--अम्बर का आशीष विमोचित ---- ललित शर्मा

हिन्दी और  छत्तीसगढ़ी  कविताओं के माध्यम से जन-चेतना की अलख जगाने वाले लोकप्रिय  संत  कवि पवन दीवान  (स्वामी अमृतानंद सरस्वती ) से जगत में सभी परिचित हैं। इसलिए मुझे उनके विषय में परिचय देने की आवश्यकता नहीं है। दीवान जी  का "मेरा हर स्वर इसका पूजन" नामक काव्य संकलन दो दशक पहले आया था। सौभाग्य से उसकी एक प्रति मेरे संग्रह में भी है। स्वराज करुण जी के द्वारा जानकारी मिली कि उनके दूसरे काव्य संकलन का विमोचन 1 जनवरी 2011 को जन्मदिन के अवसर पर है। इसके पश्चात छत्तीसगढी प्रख्यात गीतकार  एवं लोकसुर प्रकाशन के मुखिया भाई लक्ष्मण मस्तुरिया ने फ़ोन पर आमंत्रित किया। स्वराज्य करुण जी के साथ विमोचन समारो्ह में मुझे भी शामिल होने का मौका मिला, गरिमामय वातावरण में "अम्बर का आशीष" का विमोचन माननीय कृष्णा रंजन जी के करकमलों से हुआ। कार्यक्रम की विस्तृत रिपोर्ट के लिए यहाँ पर जाएं। दीवान जी के नवीन कविता संग्रह "अम्बर का आशीष" से एक रचना प्रस्तुत कर रहा हूँ।  

शोषण की रोशनी

कब तलक कठिनाइयाँ झेलेगा आदमी
कब तलक तनहाइयाँ झेलेगा आदमी
जिन्दगी का अब कोई मतलब न रहा
कुछ दिनों में खून से खेलेगा आदमी

महलों के गले काट के कुटियों को पिन्हा दो
शोषण की रोशनी को अंधेरे में मिला दो
जिसने भी नोच-नोच के खाया है देश को
उसका कलेजा चीर के कुत्तों को खिला दो

बेटी है शहीदों की वो शोलों में खिलेगी
इस देश को आजादी किस्तों में मिलेगी
मजदूर  को, गरीब को रोटी न मिलेगी
तुम ऐसे कटोगे कि बोटी न मिलेगी

आदमी होकर भी जीते नहीं हो क्या
खून को उबाल कर पीते नहीं हो क्या
फ़ट रही जो रोज-रोज दर्द की कमीज
बेटी की गर्म सांस से सीते नहीं हो क्या

कितनी तबाह हो चुकीं मजबूर बेटियाँ
इज्जत खरीदती है जेवरों की पेटियाँ
सत्ता की कुर्सियाँ तो लाशों पे खड़ी है
पेटों को तुमने कर दिया वोटों की पेटियाँ

बोलो जरा किसने इन्हे मजबूर बनाया
आदमी से आदमी को दूर बनाया
तुम्हीं आदमखोर थे इतिहास के घर में
एक गेहूँ जख्म को तंदूर बनाया

पवन दीवान
ग्राम किरवई (राजीम)
जिला रायपुर - छत्तीसगढ

 

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