तुमने देखा चौराहे पर जो सर-ऐ-आम हुआ
मेरे शहर का एक शख्श आज नीलाम हुआ
तारामती के आंसू और हरिश्चंद्र की मजबूरी का
गैरतमंद खरीददारों में ऊँचे से उंचा दाम हुआ
रोटी के बदले में बड़ी बोली तन की लगी थी
अमीर-ऐ-शहर ने ख़रीदा उसका बड़ा नाम हुआ
आंसू भी बिक गए आज कौडियों के दाम
मेरे तन के पैरहन का भी आज नीलम हुआ
सुबह से शाम तक नंगा खड़ा रहा चौराहे पर मै
किसी ने ना पूछा की तेरा क्या दाम हुआ
भीष्म की प्रतिज्ञा ,युधिष्ठिर का सत्य वचन भी
सब कुछ बिक गया कैसा भयानक काम हुआ
आपका
शिल्पकार
(फोटो गूगल से साभार)
तुमने देखा चौराहे पर
ब्लॉ.ललित शर्मा, मंगलवार, 8 सितंबर 2009
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
सचमुच में बहुत ही प्रभावशाली लेखन है... वाह…!!! बहुत सुन्दरता पूर्ण ढंग से भावनाओं का सजीव चित्रण... बधाई स्वीकारें। आशा है आपकी कलम इसी तरह चलती रहेगी,
आप के द्वारा दी गई प्रतिक्रियाएं मेरा मार्गदर्शन एवं प्रोत्साहन करती हैं।
आप के अमूल्य सुझावों का 'मेरी पत्रिका' में स्वागत है...
Link : www.meripatrika.co.cc