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बढ रही मंहगाई हमको आजमाने के लिए

भाई योगेन्द्र मौदगिल के गजल संग्रह ‘अंधी आँखे-गीले सपने” से एक गजल प्रस्तुत कर रहा हूँ।

बढ रही मंहगाई हमको आजमाने के लिए।
आदमी जिंदा है केवल तिलमिलाने के लिए।

बेकसी बढती रही गर दाने-दाने के लिए।
तन पड़ेगा झोंकना चूल्हा जलाने के लिए।

प्याज ने आँसू निकाले, देख बेसन ने कहा।
चाहिए अब तो कलेजा, हमको खाने के लिए।

इतनी ऊँची कूद मारी इस उड़द की दाल ने।
लोन अब लेना पड़ेगा दाल खाने के लिए।

सोचता हूं वो जमाना खूब था,जब हम पढ लिए।
दिन में तारे दिख गए, बच्चे पढाने के लिए।

नौकरी जब ना मिली तो उसने किडनी बेच दी।
दो निवाले भूखे बच्चों को खिलाने के लिए।

इक चटाई, एक धोती, एक छ्प्पर, एक घड़ा।
उम्र सारी काट दी इनको बचाने के लिए।

भूख ने तड़फ़ा दिया तो बेईमानी सीख ली।
शुक्रिया रब्बा तेरा ये दिन दिखाने के लिए।

तन पे है बनियान चड्डी,दोनों के, पर फ़र्क है।
इक छिपाने के लिए और इक दिखाने के लिए।

भन गया मैं भी मिनिस्टर, भोली जनता शुक्रिया।
मिल गया लाईसेंस मुझको देख खाने के लिए।

माफ़िया का क्या गजब का शौक है भैइ देख लो।
वर्दियों को पाल रक्खा दुम हिलाने के लिए।

चंद वादे, चंद नारे, चंद चमचे “मौदगिल’
पर्याप्त हैं इस देश की संसद में जाने के लिए।

Comments :

22 टिप्पणियाँ to “बढ रही मंहगाई हमको आजमाने के लिए”
sumit das ने कहा…
on 

bahut badiya ji

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…
on 

नौकरी जब ना मिली तो उसने किडनी बेच दी।
दो निवाले भूखे बच्चों को खिलाने के लिए।

इक चटाई, एक धोती, एक छ्प्पर, एक घड़ा।
उम्र सारी काट दी इनको बचाने के लिए

मौदगिल जी की रचना पढवाने के लिए आभार ....आज के कठिन जीवन का पूरा खाका खींच दिया

संगीता पुरी ने कहा…
on 

बहुत सुंदर रचना .. टाइपिंग में तीन स्‍थानों पर वर्तनी की अशुद्धि रह गयी है !!

पी.सी.गोदियाल "परचेत" ने कहा…
on 

समसामयिक परिस्थितियों को सुन्दर ढंग से वर्णित करती बेह्तरीन गजल !

पी.सी.गोदियाल "परचेत" ने कहा…
on 

इस खुब्सूरत रचना के लिये मौदगिल सहाब को बधाई !

राज भाटिय़ा ने कहा…
on 

वाह जी बहुत खुब. धन्यवाद

Smart Indian ने कहा…
on 

सटीक, सामयिक रचना है। आप दोनों को धन्यवाद!

Unknown ने कहा…
on 

abhinav rachna

मनोज कुमार ने कहा…
on 

आदमी जिंदा है केवल तिलमिलाने के लिए।
तन पड़ेगा झोंकना चूल्हा जलाने के लिए।
तल्ख़ हक़ीक़त। बहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं!
एक आत्‍मचेतना कलाकार

Swarajya karun ने कहा…
on 

हकीकत बयान करती ह्रदय-स्पर्शी गज़ल. भाई योगेन्द्र मौदगिल को बधाई और प्रस्तुतिकरण के लिए आपका आभार .

खबरों की दुनियाँ ने कहा…
on 

बढ रही मंहगाई हमको आजमाने के लिए।
आदमी जिंदा है केवल तिलमिलाने के लिए।

बेकसी बढती रही गर दाने-दाने के लिए।
तन पड़ेगा झोंकना चूल्हा जलाने के लिए। मंजा आगे महराज । जय हो ।

बेनामी ने कहा…
on 

बेहतर...
कुछ अश्आर तो बहुत खूब...

अनामिका की सदायें ...... ने कहा…
on 

lalit ji shukirya is gazal ko padhane ke liye.

ek baat sach aaj dil me aa rahi hai ki is gazal ko ga ga kar vote maange ke time un netaao ko sunaya jaye jo desh bhakti ke geet us samay le kar chalte hain....ek tara unka desh bhakti ka geet ho...aur dusri taraf is gazal ke tez awaaz me bol hon tab dekho neta apne gharo me ghuste nazar aayenge.

समयचक्र ने कहा…
on 

ह्रदय-स्पर्शी गज़ल है.. भाई योगेन्द्र मौदगिल को बधाई.....

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…
on 

चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी रचना कल मंगलवार 28 -12 -2010
को ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..


http://charchamanch.uchcharan.com/

Arvind Jangid ने कहा…
on 

शानदार प्रस्तुति, आपका आभार.

वाणी गीत ने कहा…
on 

महंगाई ने सब कुछ बदल दिया , बस संसद में बैठे लोगों का कुछ नहीं बदलता ...
वहां जाने के उपाय भी बता दिए इस कविता में ...
ताज़ा मुद्दे पर कविता पढवाने के लिए बहुत आभार !

Kailash Sharma ने कहा…
on 

समसामयिक परिस्थितियों पर बहुत यथार्थपरक सटीक चोट..बहुत सुन्दर प्रस्तुति

bilaspur property market ने कहा…
on 

खुब्सूरत रचना

....आप को नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाये ..

P.N. Subramanian ने कहा…
on 

बेहद खूबसूरत और ज़बरदस्त रचना. आभार पढवाने के लिए.

Unknown ने कहा…
on 

आपको और आपके परिवार को नव वर्ष की अनंत मंगलकामनाएं

मदन शर्मा ने कहा…
on 

नौकरी जब ना मिली तो उसने किडनी बेच दी।
दो निवाले भूखे बच्चों को खिलाने के लिए।

इक चटाई, एक धोती, एक छ्प्पर, एक घड़ा।
उम्र सारी काट दी इनको बचाने के लिए।
बहुत बढ़िया ... बधाई

 

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