मै
एक छोटी सी
लहर हूँ
समन्दर की
मैं चाहने लगी हूँ
उस चाँद को
उसका आकर्षण
मुझे प्रेरित करता है
आकर्षित करता है
उसका सलोना बांकपन
मुझे मोह लेता है
मै डूबना चाहती हूँ
आनंद में
अनुभूति करना चाहती हूँ
प्रणय की पराकाष्ठा की
मै भी
अस्तितत्व बनाना चाहती हूँ
उन उतुंग पहाडों सा
जो कभी लहरें थे
मेरी तरह
मिलन के आनंद ने
स्थिर कर दिया
उन्हें इस संयोग ने
योगी बना दिया
एक स्पर्श ने
वुजूद दे दिया
योगी बना दिया
आपका
शिल्पकार
(फोटो गूगल से साभार)
बताओ सालो बाद सम्पर्क हुआ भी तो ब्लाग के ज़रिये।रिश्तो की इस नई दुनिया मे दोबारा मिलना अच्छा लगा।लिखा तो बहुत अच्छा है,विषय पर गहरी पकड़ नही होने के कारण विस्तार से कमेण्ट नही कर पा रहा हूं।