फूलों से हो लो तुम,जीवन में सुंगध भर लो
महकाओ तन-मन सारा भावों को विमल कर लो
फूलों से हो लो तुम ........................................
वो मालिक सबका हैं ,जिस माली का हैं ये चमन
वो रहता सबमे हैं तुम ,कर लो उसी का मनन
हो जाये सुवासित जीवन ऐसा तो जातां कर लो
फूलों से हो लो तुम.......................................
शुभ कर्मों की पौध लगाओ जीवन के उपवन में
देखो प्रभु को सबमे वो रहता हैं कण-कण में
बन जाओ प्रभु के प्यारे ऐसा तो करम कर लो
फूलों से हो लो तुम......................................
मै कोन?कहाँ से आया ? कर लो इसका चिंतन
जग में रह कर के ,उस दाता से लगा लो लगन
रह कर के कीचड़ में खुद को कमल कर लो
फूलों से हो लो तुम.......................................
वो दाता सबका हैं, दुरजन हो या सूजन
वो पिता सबका हैं, धनवान हो या निरधन
ललित उसमे लगा करके जीवन को सफल कर लो
फूलों से हो लो तुम ........................................
आपका
शिल्पकार
(फोटो गूगल से साभार)
ई मेल से प्राप्त टिप्पणी -
मै कोन?कहाँ से आया ? कर लो इसका चिंतन
जग में रह कर के ,उस दाता से लगा लो लगन
बहुत सुन्दर लिखा है आपने भाई. आभार
भरत वर्मा
भिलाई
this is very beautiful poem i wish you will write this type of many other poem
सुन्दर संदेश/ उम्दा भाव. बेहतरीन रचना!!
वो दाता सबका हैं, दुरजन हो या सूजन
वो पिता सबका हैं, धनवान हो या निर्धन
ललित उसमे लगा करके जीवन को सफल कर लो
फूलों से हो लो तुम .....
अच्छी बन पड़ी है सरल और सहज।