हवा है मेरा नाम मैं बादल की सहेली
आकाश पे छ जाती हूँ मैं बनके पहेली
आँधियों ने आके मेरा घर बसाया
आकाश के तारों ने उसे खूब सजाया
चली जब गंगा की ठंडी पुरवैया
धुप के आंगन में खिली बनके चमेली
चुपके आके कान में बादल ने ये कहा
भर के लाया हूँ पानी तू धरती पे बरसा
प्यास मिटेगी सबकी फैलेगी हरियाली
धरती भी झूमेगी बनके दुल्हन नवेली
जादे के मौसम की मैं सर्द हवा हूँ
पहाडों में भी बहती रही मैं सर्द हवा हूँ
फागुनी रुत में सिंदूरी हुआ पलाश
पतझड़ आया तो फिरि मैं बनके अकेली
सदियों से मैं तो यूँ ही चलती रही हूँ
चलते-चलते मैं कभी थकती नही हूँ
बहना ही मेरा जीवन चलना ही नियति है
बंजारन की बेटी हूँ मैं तो ये चली
हवा है मेरा नाम मैं बादल की सहेली
आकाश पे छा जाती हूँ मैं बनके पहेली।
आपका
शिल्पकार
(फोटो गूगल से साभार)
बंजारन की बेटी हूँ मैं तो ये चली
ब्लॉ.ललित शर्मा, बुधवार, 16 सितंबर 2009
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बेहतरीन!!
हवा है मेरा नाम मैं बादल की सहेली
आकाश पे छा जाती हूँ मैं बनके पहेली।
बहुत सुन्दर!
बधाई!
अत्यंत सजीवता कविता में
सुन्दर कविता....बादलों और वर्षा ऋतु का बड़ा ही सजीव चित्र खींचा आपने शब्दों के माध्यम से...
सुन्दर कविता