हिन्दी दिवस पर अर्पित हैं चंद फूलों की कलियाँ
कुछ गांव का अल्हड़पन कुछ गांव की गलियां
कुछ हिमालयी पीर दुष्यन्ति कुछ फूल जयशंकरी
कुछ लहरें मन उमंग की कुछ फूलों की डलियाँ
फूल बहुत थे जो बाग़ में खिलने आए थे
कुछ और भी थे जो धुप में जलने आए थे
कुछ सर चढ़े कुछ गलहार भी बनाये गये
कुछ ऐसे भी थे जो धूल में मिलने आए थे
कुछ और भी थे जो धुप में जलने आए थे
कुछ सर चढ़े कुछ गलहार भी बनाये गये
कुछ ऐसे भी थे जो धूल में मिलने आए थे
जब सुबह-सुबह तुम्हारी बात होती है
मुझ पर नेमतों की बरसात होती है
दिन ढल जाता है तेरी यादों के सहारे
पर हर रात क़यामत की रात होती है
मुझ पर नेमतों की बरसात होती है
दिन ढल जाता है तेरी यादों के सहारे
पर हर रात क़यामत की रात होती है
शाम थी जो सारी रात रोती रही
निशा से मिलने तरसती रही
ओस की बूदें सेज पर टपकती थी
आँखें सावन सी सतत बरसती रही
निशा से मिलने तरसती रही
ओस की बूदें सेज पर टपकती थी
आँखें सावन सी सतत बरसती रही
नित मैं एक बंजारे सा भटकता हूँ
नित पावस के पपीहे सा तडफता हूँ
ये आरजू रख कर तुम्हारे दीदार की
नित यूँ ही चन्द्रकला सा घटता हूँ
नित पावस के पपीहे सा तडफता हूँ
ये आरजू रख कर तुम्हारे दीदार की
नित यूँ ही चन्द्रकला सा घटता हूँ
आज सावन की पहली बरसात हुयी
तन-मन भीगा स्नेह की बरसात हुयी
क्यूँ ना छलका तुम्हारे प्रीत का साग़र
चारों और देखो झमाझम बरसात हुयी
तन-मन भीगा स्नेह की बरसात हुयी
क्यूँ ना छलका तुम्हारे प्रीत का साग़र
चारों और देखो झमाझम बरसात हुयी
आपका
शिल्पकार
(फोटो गूगल से साभार)
शिल्पकार
(फोटो गूगल से साभार)
अच्छा लिखा आपने।
धन्यवाद अनील भाई आपका स्नेह ही हमारी अक्षय पूंजी है.
पूरी रचना लाजवाब है लेकिन ये पँक्तियाँ सब से अच्छी लगी
हिन्दी दिवस पर अर्पित हैं चंद फूलों की कलियाँ
कुछ गांव का अल्हड़पन कुछ गांव की गलियां
कुछ हिमालयी पीर दुष्यन्ति कुछ फूल जयशंकरी
कुछ लहरें मन उमंग की कुछ फूलों की डलियाँ
बहुत बहुत बधाई
अच्छा लिखा आपने।
आज तो मजा आ गया हिन्दी- हिन्दी - हिन्दी वन डे मैच जैसा माहोल , अच्छा लग रहा है, क्यो कि आई लव हिन्दी,
आप को हिदी दिवस पर हार्दीक शुभकामनाऍ।
पहेली - 7 का हल, श्री रतन सिंहजी शेखावतजी का परिचय
हॉ मै हिदी हू भारत माता की बिन्दी हू
हिंदी दिवस है मै दकियानूसी वाली बात नहीं करुगा-मुंबई टाइगर
बेहद खुबसूरत रचना !
हिंदी दिवस की अनंत शुभकामनाएँ ...
हिंदी-दिवस पर सुन्दर प्रस्तुति
हिन्दी ना बनी रहो बस बिन्दी
मातृभाषा का दर्ज़ा यूँ ही नही मिला तुमको
और जहाँ मातृ शब्द जुड जाता है
उससे विलग ना कुछ नज़र आता है
इस एक शब्द मे तो सारा संसार सिमट जाता है
तभी तो सृजनकार भी नतमस्तक हो जाता है
नही जरूरत तुम्हें किसी उपालम्भ की
नही जरूरत तुम्हें अपने उत्थान के लिये
कुछ भी संग्रहित करने की
क्योंकि
तुम केवल बिन्दी नहीं
भारत का गौरव हो
भारत की पहचान हो
हर भारतवासी की जान हो
इसलिये तुम अपनी पहचान खुद हो
अपना आत्मस्वाभिमान खुद हो …………