ढूंढ़ते हैं
तुझको
अरसे से
नयन मेरे
तेरे जाने से
तुझे देखने
बहुत तरसे हैं
नयन मेरे
हर पल
सावन से
अनवरत
बहुत बरसे हैं
नयन मेरे
नहीं चैन
एक पल भी
व्याकुल थे
नयन मेरे
उस दिन
जब तुम आई
तो मारे ख़ुशी के
छलक उठे
नयन मेरे
ठहरा वक्त
सिहर उठा मै
जब दिखे
नयन तेरे
कुछ कहने को
तरसे अधर मेरे
ना अधर खुले
ना संवाद हुआ
जो कुछ
कहना था
कह गए
नयन मेरे
आपका
शिल्पकार
बेहद ही भावुक अभिव्यक्ति सुन्दर
regards
नयनों के सुनते सुनते अच्छी कविता
बन ही गयी ..!!
@सीमा गुप्ता जी उत्साह वर्धन हेतु धन्यवाद, स्नेह बनाए रखें-आभार
@वाणी गीत जी उत्साह वर्धन हेतु धन्यवाद, स्नेह बनाए रखें-आभार
सुन्दर अभिव्यक्ति !
धन्यवाद @पी.सी.गोदियालजी उत्साह वर्धन हेतु , स्नेह बनाए रखें-आभार
behad khubsurat nazm,manbhawan.
बहुत बढिया ललित बाबू,मगर ये सावन मे अनवरत वर्षा आजकल होती कंहा है,हा हा हा हा।क्या बात बदलते मौसम ने रोमांटिक कर दिया है क्या?
बहुत ही सुन्दर शब्द संयोजन, भावमय प्रस्तुति, के लिये बधाई ।
ना अधर खुले
ना संवाद हुआ
जो कुछ
कहना था
कह गए
नयन मेरे
अभिव्यक्ति की जुबान है नयन
मन के द्वार खुले हो तो ह्रिदय रस से सराबोर हो कर नयनो मे छलकने लगता है और सुन्दर कविता अभिव्यक्त हो गयी…………
पढ कर अच्छा लगा