सदियों का मर्ज ही मेरे हिस्से आया
पत्थरों का कर्ज ही मेरे हिस्से आया
कलियों को चुन लिया माली ने बाग से
काँटों का जिस्म ही मेरे हिस्से आया
राज सदियों से उनके लिए ही रहा
काम दरबानी का ही मेरे हिस्से आया
कौन सुनता है मेरी रिन्दों की महफिल में
फ़कत खाली जाम ही मेरे हिस्से आया
बहुत किस्से सुने थे इंसाफ के तुम्हारे
फ़कत मौत का पैगाम ही मेरे हिस्से आया
आपका
शिल्पकार
(फोटो गूगल से साभार)
सुंदर कविता !
आभार
ताऊ जी, राम-राम, बहुत प्यारी गजल लिखी है आपने, मगर एक दो जगह पर लोहार की तरह ठोक दी ! लोग हालांकि मेरी इस आदत को अच्छा नहीं बताते की मैं अपने को ज्यादा होशियार समझकर उनकी कमिया गिनने लगता हूँ ! मगर क्या करू आदत से मजबूर हूँ ! आपसे भी गुजारिश करूँगा कि अगर आप अपनी इस गजल में दो छोटे हेर-फेर कर दे तो सोने में सुहागा !
१. कलियों को चुन लिया माली ने बाग से
काँटों का जिस्म {खर्ज} ही मेरे हिस्से आया
खर्ज संस्कृत का शब्द है जिसका अर्थ है पूजना अर्था कांटो को पूजने का कम ही मेरे हिस्से आया !
राज सदियों से उनके लिए ही रहा
काम दरबानी का {दरवानी का काम} ही मेरे हिस्से आया
मेरी बात अच्छी न लगे तो नाराज न होना !
राम-राम !
क्या बात है!ललित बाबू मूड मे हो आजकल।अच्छी रचना।
गोदीयाल जी राम-राम,आपने जो सुधार किया उसके लिये मैं आपका आभारी हुँ,क्योंकि बिना गुरु के ग्यान नही मिलता,आप ने अपना कीमती समय निकाल कर सुधार का काम किया मै आपका आभारी हुँ,
मनोज जी धन्यवाद,
अनिल भैया राम-राम,सभी संतो की जय हो,
बेहतर रचना...
सदियों का मर्ज ही मेरे हिस्से आया
पत्थरों का कर्ज ही मेरे हिस्से आया
उम्दा शेर....