कैसे मै ओढूँ राम चदरिया...................................
पाप की गठरी सर पे धर के कैसे आऊं मै तेरी दुवरिया
कैसे मै ओढूँ राम चदरिया...................................
जो चोला तुने दिया था, वो मैला कर डाला
पाप कर्म कर के निस दिन ,ना देखा ना भाला
रार ठान कर बैर पाल कर, करता रहा बुरईया
कैसे मै ओढूँ राम चदरिया.....................................
झूठ पाखंड कपट करने में, मुझको बड़ा ही रस आया
माया नगरी की चक मक ने, निस दिन ही भरमाया
तन भी मैला,मन भी मैला,कैसे आऊं मैं तेरी नगरिया
कैसे मै ओढूँ राम चदरिया......................................
राम रतन ही असली रतन है, बाकी सब रतन झूठे
कांकर पत्थर सकेल रहा है, करम ही तेरे फूटे
राम रतन ही श्रेष्ठ रतन है, कर ले उसे ही सांवरिया
कैसे मै ओढूँ राम चदरिया.....................................
आपका
शिल्पकार
(फोटो गूगल से साभार)
Ham sabhee apna chola maila kar lete hain...nihayat achha prastutee karan!
2 geet yaad dila diye:
"laga chunree me daag"
Tatha
" maai ree..."! aapkee rachna me geytaa bhee hai..
बहुत सुंदर, इसे तो तरन्नुम में गाया जा सकता है और ऊँचे दरजे का भजन है ।