जीवन है मेरा
मर जाता
तेरे बिना मैं
तू मेरी महबूबा है
प्रियतमा है
सब कुछ
नदिया है
आशा-निराशा
रोना-हँसना
सूख-दुख
बहा ले जाती है
अपने साथ
सब कुछ
सागर है
गाली,झूठ
थप्पड़
माँ का दुःख
समा लेती
अपने अन्दर
सबकुछ
गोल है
समय का चक्र
गाड़ी का पहिया
कुम्हार का चाक
सूरज का गोला
सबकुछ
छलना है
महाठगनी है
लेती है
अपने बदले
इज्जत
हर लेती है
सब कुछ
आपका
शिल्पकार
(फोटो गूगल से साभार)
क्या खूब। गोल है, समय का पहिया, छलना .. बहुत अच्छा लगा।
दुनिया मे झगड़ा दौलत का और रोटी का।
शर्मा जी, कविता अपने चाहे अच्छी लिखे हो या फिर ख़राब, वह ज्यादे मायने नहीं रखती, मैं आपकी इस बात के लिए तारीफ़ करूंगा कि आप उन क्षेत्रो , इलाको का दर्द और अन्दर की खूबसूरती उजागर कर रहे हो जहा पहुँचने के लिए हमारे कुछ टुच्चे खबरिया चैनलों और मीडिया कर्मियों के पास वक्त नहीं ! बहुत -बहुत बधाई !