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नया मौसम आया है जरा सा तुम संवर जाओ



नया  मौसम  आया  है  जरा  सा तुम संवर जाओ
जरा सा हम बदल जाएँ, जरा सा तुम बदल जाओ

जमी  ने  ओढ़  ली  है  एक  नयी  चुनर  वासंती 
गुजारिश है के  अब  जरा  सा  तुम  महक  जाओ

नए  चंदा- सितारों से सजाओ मांग तुम अपनी

परिंदों  के तरन्नुम में जरा सा तुम चहक जाओ

तुम्हारे  पैर  की  पायल  नया  एक  राग  गाती  है
जरा सा हम मचल जाएँ जरा सा तुम थिरक जाओ

"ललित" के मय के प्याले में तुम भी तैर लो साकी
जरा सा हम बहक जाएँ जरा सा तुम बहक जाओ



आपका 
शिल्पकार

(फोटो गूगल से साभार)

Comments :

11 टिप्पणियाँ to “नया मौसम आया है जरा सा तुम संवर जाओ”
Gyan Darpan ने कहा…
on 

बहुत खूब :)

खोटा सिक्का ने कहा…
on 

ललित भैया,बहुत ही सुंदर गज़ल-बधाई

जी.एल. शर्मा ने कहा…
on 

"ललित" के मय के प्याले में तुम भी तैर लो साकी
जरा सा हम बहक जाएँ जरा सा तुम बहक जाओ

bahut badhiya sher

ब्लॉ.ललित शर्मा ने कहा…
on 

रतन सिंग जी आपको गज़ल पसंद आई-राम-राम

ब्लॉ.ललित शर्मा ने कहा…
on 

सुनील भाई आपको शुभकामनाएं
शिल्पकार के पास आगे भी आएं

ब्लॉ.ललित शर्मा ने कहा…
on 

धन्यवाद भाई शर्मा जी, आपको शु्भकामनाएं

निर्मला कपिला ने कहा…
on 

बहुत खूब शुभकामनायें

अनिल कान्त ने कहा…
on 

बहुत खूबसूरत गज़ल है जी

Arshia Ali ने कहा…
on 

बहुत रूमानी गजल है। बधाई।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाएं, राष्ट्र को प्रगति पथ पर ले जाएं।

Udan Tashtari ने कहा…
on 

नया मौसम आया है जरा सा तुम संवर जाओ
जरा सा हम बदल जाएँ, जरा सा तुम बदल जाओ

--वाह! वाह!! बहुत बेहतरीन!

शरद कोकास ने कहा…
on 

मचलने और थिरकने की जुगलबन्दी अच्छी लगी।

 

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