नया मौसम आया है जरा सा तुम संवर जाओ
जरा सा हम बदल जाएँ, जरा सा तुम बदल जाओ
जमी ने ओढ़ ली है एक नयी चुनर वासंती
गुजारिश है के अब जरा सा तुम महक जाओ
नए चंदा- सितारों से सजाओ मांग तुम अपनी
जरा सा हम बदल जाएँ, जरा सा तुम बदल जाओ
जमी ने ओढ़ ली है एक नयी चुनर वासंती
गुजारिश है के अब जरा सा तुम महक जाओ
नए चंदा- सितारों से सजाओ मांग तुम अपनी
परिंदों के तरन्नुम में जरा सा तुम चहक जाओ
तुम्हारे पैर की पायल नया एक राग गाती है
जरा सा हम मचल जाएँ जरा सा तुम थिरक जाओ
"ललित" के मय के प्याले में तुम भी तैर लो साकी
जरा सा हम बहक जाएँ जरा सा तुम बहक जाओ
शिल्पकार
(फोटो गूगल से साभार)
बहुत खूब :)
ललित भैया,बहुत ही सुंदर गज़ल-बधाई
"ललित" के मय के प्याले में तुम भी तैर लो साकी
जरा सा हम बहक जाएँ जरा सा तुम बहक जाओ
bahut badhiya sher
रतन सिंग जी आपको गज़ल पसंद आई-राम-राम
सुनील भाई आपको शुभकामनाएं
शिल्पकार के पास आगे भी आएं
धन्यवाद भाई शर्मा जी, आपको शु्भकामनाएं
बहुत खूब शुभकामनायें
बहुत खूबसूरत गज़ल है जी
बहुत रूमानी गजल है। बधाई।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाएं, राष्ट्र को प्रगति पथ पर ले जाएं।
नया मौसम आया है जरा सा तुम संवर जाओ
जरा सा हम बदल जाएँ, जरा सा तुम बदल जाओ
--वाह! वाह!! बहुत बेहतरीन!
मचलने और थिरकने की जुगलबन्दी अच्छी लगी।