भेजा है क्यों भगवन तुने
मुझको इस संसार में
हाथ जोड़ विनती करता हूँ
खडा तेरे दरबार में
लक्ष्य कहाँ है मेरा प्रभु जी,अब तक ढूंढ़ ना पाया हूँ
मैं कौन हूँ? बड़ा प्रश्न है, पास तेरे मैं आया हूँ.
तृष्णा के बन में भटका, डूबा रहा श्रृंगार में
भेजा है क्यूँ प्रभु जी तुने...............................
अक्षर ब्रम्ह तो तुने दिया, पर रचना ना कर पाया
साज सिंगार तो सब किया,पर सजना ना बन पाया
दूर करो दुर्बुद्धि सब तुम, सदगुण रहे विचार में
भेजा है क्यों प्रभु जी तुने ..................................
चेतन मन तो नही हुआ है, चारों ओर मोह माया है
मनुज-मनुज में भेद हुआ है,अन्धकार सब छाया है
दूर करो कलुष जीवन के, लगे मन सहकार में
भेजा है क्यों प्रभु जी तुने ..................................
होवे प्रीत सभी प्राणी में,मन में करुणा भर दो तुम
भटका हुआ रही हूँ मैं, सच्ची राह दिखा दो तुम
प्रचंड प्रकाश का उदय करो, अंतर के अंधकार में
भेजा है क्यों प्रभु जी तुने .................................
आपका
शिल्पकार,
(फोटो गूगल से साभार)
lalit bhaiya bahut hi badiya prarthna hai bade hi sundar bhav hai,
सुन्दर्।
बहुत बढ़िया रचना . रचना की समयचक्र की चिठ्ठी चर्चा में चर्चा . आभार
बहुत सुंदर लिखा है . चिट्ठों की चर्चा में स्थान मिलने पर बधाई ।
आगे भी ऐसी रचनाओं का इंतज़ार रहेगा ।
हम सभी को ये प्रश्न सताता है ...दुआ और उम्मीद ,की , आपका ये जीवन सफ़र निरामय हो !
बढ़िया रचना...
भाई जी कालेपन को दूर कीजिए ना..
पढ़ नहीं ना पा रहे हैं...
आपको भी मेरी शुभकामनाये,