यह कविता मैंने काफी वर्षों पहले कारगिल युद्घ के समय लिखी थी,
आज पुरानी डायरी हाथ में आ गयी तो सोचा की आपको भी पढ़वा दूँ
छोडो इतिहास का बोझा,पथ नवीन अपनाओ
अब तुम अपने हाथो से ,इतिहास नया रचाओ
नव युग का आह्वान करो,अब तुम्हारी बारी है,
हो जाओ तैयार रणबीरों,अब तुम्हारी बारी है
कदम आगे बढाकर तुम नव अश्वमेघ रचाओ
छोडो इतिहास का बोझा,पथ नवीन अपनाओ
अब तुम अपने हाथो से ,इतिहास नया रचाओ
तेज करो शमशीरों को,तुफानो से मत घबराओ,
बाधाओं से लड़ जाओ,लान्घो ऊँची दीवारों को
घनघोर युद्ध रचाओ ऐसे, नाम अमर कर जाओ
छोडो इतिहास का बोझा,पथ नवीन अपनाओ
अब तुम अपने हाथो से ,इतिहास नया रचाओ
भीष्म प्रतिज्ञा बिना कही,रास्ट्र कल्याण होगा
नवीन सूर्य उदित होगा, जब शर संधान होगा
लक्ष्य तुम ही पाओगे, बसंती चोला अपनाओ
छोडो इतिहास का बोझा,पथ नवीन अपनाओ
अब तुम अपने हाथो से ,इतिहास नया रचाओ
आपका
शिल्पकार
फोटो गूगल से साभार
this is very good and intresting poem i must say. i have read it and enjoy also well wishes to poet to write poem and give us pleausure to read this type of poem