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लडेगा कौन इनसे सर पर कफ़न बांध कर


लडेगा कौन इनसे सर पर  कफ़न बांध कर
आते हैं ये चोर भी घर से   कफन बांध कर


कल रात खिड़की से घर  में सारे  घुस गये
ले  गये  सब  कुछ  मेरे  हाथ  पैर बांध कर

मैं जोर से रात में चोर चोर चिल्लाता  रहा
कोई पडोसी न जगे सोये रहे मुंह बांध कर 


थाने गया रपट लिखने वहां बड़ा  हंगामा था
सुना कोई चोर भागा है  सिपाही को मारकर


सायरन बजाते पुलिस की गाड़ी  निकल गयी
एक बोला मरने आते हैं साले कफन बांध कर


आपका
शिल्पकार


(फोटो गूगल से साभार) 

Comments :

8 टिप्पणियाँ to “लडेगा कौन इनसे सर पर कफ़न बांध कर”
गिरिजेश राव, Girijesh Rao ने कहा…
on 

... मरने आते हैं साले कफन बांध कर

जाने क्या क्या कह गई ये लाइनें! नया ढंग और नई बात, रोजमर्रा से निकली। ...सड़कों पर बिखरे आवारा कंकड़ों सी घटनाओं को जोड़ कर कविता रच दी। एक शिल्पकार ही ऐसा कर सकता है!

Rakesh Singh - राकेश सिंह ने कहा…
on 

इन्हें चोर कहना तो चोर की तौहीन है ... ये तो उससे भी कई गुना ज्यादा गए गुजरे लोग हैं |

Anil Pusadkar ने कहा…
on 

राकेश क्या कह रहें है,ललित भाई गौर फ़रमाईयेगा।

M VERMA ने कहा…
on 

समाज, व्यवस्था और अनुभूति के स्तर को खोल के रख दिया आपकी इस रचना ने कफन बाँधकर --

Amit K Sagar ने कहा…
on 

आपने कई महत्वपूर्ण बातों को बहुत ही खूबसूरती से लिखा है. बहुत बहुत सार्थक.
---

अंतिम पढ़ाव पर- हिंदी ब्लोग्स में पहली बार Friends With Benefits - रिश्तों की एक नई तान (FWB) [बहस] [उल्टा तीर]

Arvind Mishra ने कहा…
on 

अद्भुत !

SP Dubey ने कहा…
on 

बहुत बढिया

SP Dubey ने कहा…
on 

बहुत बढिया

 

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