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इंडी ब्लागर

 

मांझी हूँ मुझे बस कोई पतवार चाहिए,२२ साल पुरानी ग़ज़ल

मित्रों! काफी दिनों पहले लिखी हुई ग़ज़ल है, लग-भग २२ साल हो गये होंगे मुझे अभी दीवाली के सफाई कार्यक्रम में मिल गई जिसे हमारे बड़े भाई गिरीश पंकज जी ने संवारा है वही ग़ज़ल आज आपके लिए प्रस्तुत कर रहा हूँ,आशा है पसंद आएगी.  



वक्त को  रुकने  का  इक   आधार  चाहिए
मांझी  हूँ  मुझे  बस  कोई पतवार चाहिए

झुलसा  है  मन  मेरा ज़माने की आग से
अब   प्यार  की   ठंडी  इसे फुहार चाहिए

बेगानी   दुनिया   में  अपनों  की है तलाश
सीने  से  जो  लगे मुझे  वह  प्यार  चाहिए

चिंगारियां है इश्क की अब तो सुलग रही
जो  तोड़  दे  सीमा  को वही ज्वार चाहिए


अबके  फिजां  में वैसी रौनक  नहीं मिली

अरमां   को   जगा दे   वो  बहार   चाहिए

मरने   के  बाद  यारों  अर्थी  को मेरे कोई
मंजिल  तक  ले  जाये वही कहार चाहिए 


आपका
शिल्पकार 


(फोटो गूगल से साभार)

Comments :

6 टिप्पणियाँ to “मांझी हूँ मुझे बस कोई पतवार चाहिए,२२ साल पुरानी ग़ज़ल”
M VERMA ने कहा…
on 

झुलसा है मन मेरा ज़माने की आग से
अब प्यार की ठंडी इसे फुहार चाहिए
बहुत खूबसूरत गजल. हर शेर उम्दा

पी.सी.गोदियाल "परचेत" ने कहा…
on 

बेगानी दुनिया में अपनों की है तलाश
सीने से जो लगे मुझे वह प्यार चाहिए

मरने के बाद यारों अर्थी को मेरे कोई
मंजिल तक ले जाये वही कहार चाहिए

बहुत सुन्दर जज्बात शर्मा जी !

अर्कजेश ने कहा…
on 

मांझी हूँ मुझे बस कोई पतवार चाहिए


बेगानी दुनिया में अपनों की है तलाश
सीने से जो लगे मुझे वह प्यार चाहिए


बहुत खूब ! क्य बात है !

अर्कजेश ने कहा…
on 

मांझी हूँ मुझे बस कोई पतवार चाहिए


बेगानी दुनिया में अपनों की है तलाश
सीने से जो लगे मुझे वह प्यार चाहिए


बहुत खूब ! क्य बात है !

संगीता पुरी ने कहा…
on 

वाह सुंदर रचना है !!

Unknown ने कहा…
on 

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