एक बार
दीये फिर जल उठे थे
लगा की उजड़ा चमन
आज बस गया
लगा की बहारें
आज लौटी हैं फिर
कुछ प्राण में नयी
सांसे भरने को
उदासी में कुछ
उमंग भरने को
तम में कुछ
उजास भरने को
सहसा एक हवा चली
दीये बुझ गये
बहारें चली गई
बिना प्राण में
नयी सांसे भरे
मैं बैठा था
उसकी प्रतीक्षा में
इस चमन को
आंसुओं से सींचते
बुझे दीयों में
अपना खून जलाते
तम को दूर करने का
भरसक प्रयास करते हुए
हमेशा की तरह
आपका
शिल्पकार
(फोटो गूगल से साभार)
bahut badhiya kavita hai, ye hi hota hai.jivan me kai rang hain. badhai
sundar kavita
ललित भैया,बहुत सुन्दर चित्रण,कविता के माध्यम से
बधाई।
उम्दा कविता-बधाई
बहुत सुन्दर कविता बधाई।
मैं बैठा था
उसकी प्रतीक्षा में
इस चमन को
आंसुओं से सींचते
बुझे दीयों में
अपना खून जलाते
सुन्दर अभिव्यक्ति
धन्यवाद संदीप जी। शुभकामनाएं
धन्यवाद उदय भाई, शुभकामनाएं