मै एक बहुरुपिया हौं
क्षण - प्रतिक्षण
मुखौटे बदल लेता हूँ
तू है तो तेरे जैसा
मै हूँ तो मेरे जैसा
न जाने सुबह से शाम तक
कितने रूप बदल लेता हूँ
बेटा,पिता,पति
चहाचा,ताऊ,मामा,आदि आदि
आचार्य, कवि, चित्रकार
उद्घोषक, संचालक आदि आदि
किसान,जवान,सियान
मुर्ख, विद्वान्,बुद्धिमान आदि आदि
मित्र ,शत्रु, आलोचक,
समीक्षक,परीक्षक आदि आदि
अभियुक्त, मुंशी, न्यायाधीश,
गवाह, वकील, आदि आदि,
क्लर्क ,चपरासी, अधिकारी,
चौकीदार, अर्दली आदि आदि
भंगी, पंडित, रसोइया,
महाराज, शिल्पकार आदि आदि
इन बहूरूपों में
मेरा अपना रूप खो गया है
धुंध रहा हूँ मै
अपने असली चेहरे को
जो इन मुखौटों में
एक मुखौटा बनकर
खूंटी से लटक गया है
आपका
शिल्पकार
(फोटो गूगल से साभार)
YEH ARTICAL ME KAVITA KA ELEMENT HAI. CHAYAVADI RAS KA ANAND HAI.mUHHE AAPKI TUK DANDIYO WALI KAVITA JADA TASTE LAGATI HAI. VARITY OF MOOD KE HISAB SE AACCHI HAI