एक बीज से आस जगी थी,मृगतृष्णा सी प्यास जगी थी,
सारा चौपाल सूना-सूना था, जैसे गांव में आग लगी थी,
चारों तरफ़ सन्नाटा-ही सन्नाटा,जैसे कोई सन्निपात हो गया,
उगे बीज को मरते देखा,
जैसे कोई गर्भपात हो गया।
तेरे इस विशाल नीले आँचल में, पंख फैलाये उड़ता था मै,
प्रगति के नए सोपानों में, नित्य सितारे जड़ता था मै,
मुझसे क्या अपराध हो गया, मुझ पर क्यों आघात हो गया,
उगे बीज को मरते देखा,
जैसे कोई गर्भपात हो गया,
पहले भी मै तडफा-तरसा था, तू कभी न समय पर बरसा था,
लिए हाथ में धान कटोरा, मै फ़िर भी बहुत - बहुत हर्षा था,
नई सुबह की आशा में था, सहसा ही वज्रपात हो गया,
उगे बीज को मरते देखा,
जैसे कोई गर्भपात हो गया,
गीली मेड की इस फिसलन पर, मै बहुत दूर जा फिसला हूं,
तेरे कृपा की आस लिए मै,नित तुझको ही भजता हूँ,
डोला गगन आ गया विप्लव,जैसे कोई उल्का पात हो गया,
उगे बीज को मरते देखा,
जैसे कोई गर्भपात हो गया,
असमय बरसा तो क्यों बरसा,चारों तरफ हा-हा कार हो गया,
जिस पर अभी यौवन आना था,वो जीवन से बेजार हो गया,
तेरी इस असमय वर्षा पर, रोऊँ या मै जान लुटा दूँ,
लूटा-पिटा बैठा हूँ अब मै ,जैसे कोई पक्षाघात हो गया,
उगे बीज को मरते देखा,
जैसे कोई गर्भपात हो गया।
आपका
शिल्पकार
(फोटो गूगल से साभार)
गर्भपात हो गया
ब्लॉ.ललित शर्मा, शुक्रवार, 21 अगस्त 2009
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