पाँव के छाले ही, रहे मेरी खातिर,
सूखे निवाले ही, रहे मेरी खातिर।
फ़ूलों की सेज पे, सोते हैं रहनुमा
टाट के बिछौने ही, रहे मेरी खातिर।
ज्म्मुहुरियत के दावे, उनने खूब किए
पर फटे पैजामे ही, रहे मेरी खातिर।
भूखे पेट ही, खुश रहने की सोची,
नश्तर बनाते ही, रहे मेरी खातिर।
बच्चों ने मांगे,जन्मदिन के तोहफे,
वादों के सहारे ही, रहे मेरी खातिर।
फ़ूलों भरी राह होगी, किसी के लिए
कांटों भरे रास्ते ही, रहे मेरी खातिर।
सूखे निवाले ही, रहे मेरी खातिर।
फ़ूलों की सेज पे, सोते हैं रहनुमा
टाट के बिछौने ही, रहे मेरी खातिर।
ज्म्मुहुरियत के दावे, उनने खूब किए
पर फटे पैजामे ही, रहे मेरी खातिर।
भूखे पेट ही, खुश रहने की सोची,
नश्तर बनाते ही, रहे मेरी खातिर।
बच्चों ने मांगे,जन्मदिन के तोहफे,
वादों के सहारे ही, रहे मेरी खातिर।
फ़ूलों भरी राह होगी, किसी के लिए
कांटों भरे रास्ते ही, रहे मेरी खातिर।
आपका
शिल्पकार
BAHUT SUNDER KAVITA BANI HAI. BADAIII...... LALIT JI AAP KI IS PRAKAR KI KAVITA APPKA VISHESHATA HAI