सदियों का मर्ज ही मेरे हिस्से आया,
पत्थरों का कर्ज ही मेरे हिस्से आया।
कलियां चुन ली हैं, माली ने बाग से,
काँटों का जिस्म ही मेरे हिस्से आया।
राज सदियों से उनके लिए ही रहा,
काम दरबानी का ही मेरे हिस्से आया।
कौन सुनता है रिन्दों की महफिल में,
फ़कत खाली जाम ही मेरे हिस्से आया।
बहुत किस्से सुने थे इंसाफ के तुम्हारे ,
मौत का फ़रमान ही मेरे हिस्से आया।
आपका
शिल्पकार
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