पत्थर ढोना ही मेरी किस्मत में लिखा था
पहाड़ तोड़ना ही मेरी किस्मत में लिखा था
पत्थरों को तराश कर उसके बुत बनाये मेने
भूखे पेट मरना ही मेरी किस्मत में लिखा था
बहुत कोडे बरसाए थे उसने मेरी पीठ पर
जख्मो का दर्द ही मेरी किस्मत में लिखा था
पहाडों को तोड़ कर उनके लिए महल बनाये हैं मैंने
दीवारों में चुना जाना मेरी किस्मत में लिखा था
शाहकार बनने पर वे कटवा देंगे मेरे दोनों हाथ
उनका येही इनाम मेरी किस्मत में लिखा था
आपका
शिल्पकार
(फोटो गूगल से साभार)
पत्थर तोड़ना ही मेरी किस्मत में लिखा था
ब्लॉ.ललित शर्मा, शनिवार, 22 अगस्त 2009
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BAHUT PYARI KAVITA HAI. YE DIL SE NIKALI HAI AUR SIDHE DIL TAK JATI HAI. BADAI............
पत्थरों से करके यारी होशियारी
क्यों डरते हो जब चलती है आरी
उम्दा रचना...बधाई...
किस्मत का खेल मुझे पसंद नहीं आता...इसलिए इसे आगे बढ़ाने की गुस्ताखी कर रहा हूं...अपने भाव जोड़ रहा हूं..
उनकी किस्मत निर्भर है मेरी हर ज़ुंबिश पर
कहते है यह भी मेरी किस्मत में लिखा था
चिलकते पसीने की बूंदे उठाती हैं यह सवाल
क्यूं हर बार यही मेरी किस्मत में लिखा था
किस्मत को परे छोड़ अब निकलेंगी मुट्ठियां
बदलेगा यह जहां, मेरी किस्मत में लिखा था