नव वधु सी
लजाती
सकुचाती आई
वह कविता
बिना टिप्पणी
बैरंग लिफ़ाफ़े सी
लौट आई
वह कविता
कुछ दिन बाद
कविता का स्वंयवर
रचा गया
कर माल लिए
रावण को वर आई
वह कविता
क्योंकि
भरी सभा मे
रावण ने धनुष
खंडित किया
अप्रीतम को
वर आई
वह कविता
आपका
शिल्पकार
कविता का स्वंयवर!!
ब्लॉ.ललित शर्मा, रविवार, 31 जनवरी 2010
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वाह ललित जी!
वर्तमान परिवेश को जीवन्त कर दिया है
आपने अपनी रचना में।।
सुन्दर रचना!
वाह सर इस शिल्पकार के मुख से तो जब भी जो भी निकलता है , अद्भुत अप्रतिम होता है .....कमाल है रावण को वरना
अजय कुमार झा
रावण को वर आई
वह कविता
जब कविता ब्याह गई तो टिप्पणी का दहेज़ ले ही लीजिये
जब कविता ब्याह गई तो टिप्पणी का दहेज़ ले ही लीजिये
वाह...नई सोच के साथ ..नए संदर्भ में लिखी गई सुंदर कविता
यथार्थ बयान
सुन्दर चित्रण
पर कविता को सजग होना ही होगा - अप्रीतम का वरण तो न करे.
सुन्दर अभिव्यक्ति!
ललित जी, यही तो अन्तर है त्रेता और कलि में। त्रेता में राम वरा जाता है पर कलियुग में तो रावण का ही वर्चस्व होता है।
वाह भाई, राम और रावण की सुन्दर परिभाषा.
हमारा भी शगुन ले लीजिये टिप्पणी के लिफाफे मे आभार्
कविता की शादी मे ब्लोगर है दीवाना
रावण का लोहा हम सबने भी माना
कलयुग के नये खेल नये स्वयम्बर है
हम भी क्या करे रावन का है जमाना
बेहतर...अभिव्यंजना...
बेरंग लिफ़ाफ़े की तरह लौटने के बाद...
कविता का अवमूल्यन हुआ है...
यह भी ठीक तो नहीं...
कविता का स्वंयवर
रचा गया
कर माल लिए
रावण को वर आई
वह कविता
क्योंकि
भरी सभा मे
रावण ने धनुष
खंडित किया
अप्रीतम को
वर आई
वह कविता
और फिर इक रोज
रावण की हो गई कविता
क्योकि उसे कोई राम न मिला
बहुत खूब गुरूजी !
मिथक को इतना सटीक ढंग से
प्रयोग किया कि ... पूछिए मत ! ...
HAR BAAR RAAM NHI MILA KARTE SHAYAD ISILIYE RAVAN KA VARAN HONE LAGA HAI........BEHAD UMDA PRASTUTI.
बहुत खूब .....लिखा आपने
कविता की व्यथा कहें या कविता की मजबूरी!! सही बयां किया है !
अत्यन्त सुंदर भाव....बढ़िया लगी...धन्यवाद ललित जी
यह रचना व्यंग्य नहीं, व्यंग्य की पीड़ा है। पीड़ा मन में ज़ल्दी धंसती है।
बेहद सुन्दर..वाह ललित भाई.
वाह्! बेहद कमाल की रचना....
गजब!
KAVITA APKI ACCHI HAI
कविता को वधु की तरह नही तमंचे की तरह भेजो देखते है कौन सम्पादक लौटाता है ।