सब लोग बड़ी बड़ी कविता लिखते हैं और छोटी से छोटी भी. एक दिन शरद भाई बोले यार मेरी कविता 57 पेज की है. मैं सोचने लगा कविता है कि खंड काव्य है. लेकिन उन्होंने पढवाई नही. फिर कभी पढवायेंगे. आज मैंने सोचा कि सब छोटी बड़ी लिखते हैं कविता. मै भी लिख कर देखता हूँ. तो मैंने भी आज ढाई लाईन की कविता लिखी है. आपका आशीर्वाद चाहूँगा.
उसके जाते ही
मेरे बंद हुए किवाड़
वो डूबता हुआ सूरज था
आपका
शिल्पकार
सुंदर कविता और चित्र भी।
भाई शुरुआत चित्र सहित बढ़िया लगी ...आगे की प्रतीक्षा
ये हुई न बात.
'चांद का मुंह टेढ़ा है' पढ़ी थी एम0ए0 में, बड़े लोगों की कविताएं बड़ी होती हैं. हम-आप इस काबिल हैं हीं नहीं ... इतने में काम चला लेते हैं बुलेट के माफ़िक :) ठां.
कविताएँ शब्दों से नही बड़ी होती है भावों से बड़ी होती है.
आपकी कविता बहुत बड़ी है
भावों की अभिव्यक्ति ही तो है कविता! जितने कम शब्दों में अधिक से अधिक भावों की अभिव्यक्ति हो उतनी ही सुन्दर कविता होगी।
बहुत सुन्दर चित्रों से सुसज्जित कविता.........
द्विपदम - त्रिपदम कविता भी किसी महकाव्य से कम नही होती, बडे भाई.
सुन्दर कविता के लिये धन्यवाद.
द्विपदम - त्रिपदम कविता भी किसी महकाव्य से कम नही होती, बडे भाई.
सुन्दर कविता के लिये धन्यवाद.
एक यथार्थ
बी एस पाबला
बढ़िया।
ढाई पंक्ति की कविता को मेरी ओर से पाँच सितारा
बहुत सुन्दर शब्द चित्र है।बधाई।
अद्भुत मिश्रण है..सुन्दर कविता..और सुन्दर तस्वीर का , लाजवाब !
ढाई पंक्तियों में जगत आ समाया है/
ढाई लाइनें बढ़िया हैं....
ढाई लाइन का कमाल..एक खूबसूरत भाव..रेकॉर्ड बना दिए आप तो..बधाई!!
डूबता हुआ सूरज
बैलगाड़ी पर घर लौटते बच्चे
ढ़ाई लाइन की कविता
दृश्य बहुत अच्छे
बहुत बढिया जी, इसका शीर्षक होना चाहिये " ढाई आखर की कविता"
रामराम.
वाह क्या चित्र है, और बहुत खूब छोटी कविता है...
आज ठण्ड बहुत है.. मैं भी एक छोटी सी कविता लिख पोस्ट कर देता हूँ.
धन्यवाद आपका, प्रेरणा आप से मिल ही गयी.
सुन्दर! किवाड़े एट्टोमैटिक वाले हैं लगता है।
सुंदर छोटी सी कविता... अच्छा लगा ललित भाई आप अच्छा लिख रहे हो.
हाँ
डूबते सूरज के जाते ही
अच्छे-अच्छे किवाड़ बंद कर लेते हैं
कोई नहीं कहता
आ बैठ
दो पल बात करेंगे।
--अच्छी कविता के लिए बधाई।
@ काजल जी
" चाँद का मुँह टेढ़ा है.." बड़ी कविता इसलिए है कि जिन्दगी की जटिलता छोटे में नहीं समाती। हाँ, वैसा रचने के लिए बहुत बहुत बड़ा दिल चाहिए।
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ललित जी, मुझे याद आ रहा है कभी कहा था..आप पहले हैं जिसने अपने को शिल्पकार घोषित किया है। उस एक वाक्य में अनगिनत आशाएँ निहित थीं। आप ने उन्हें सिद्ध कर दिया है।
इस कविता के बिम्ब और अर्थवत्ता पर अशब्द हूँ " अर्थ अमित अति आखर थोरे"। ब्लॉगरी की दुनिया में जहाँ ऐसी कविता पर 'दरवाजे के ऑटोमेटिक' होने की बात होती हो, आप को 'डूबता हुआ' जोड़ने की जरूरत थी वर्ना एक शिल्पी की कविता में सिर्फ 'वो सूरज था' होना ही पर्याप्त होता। पर्याप्त ही नहीं प्रभाव में और गहन हो जाता। ... प्रशंसक की बात पर गौर फरमाइएगा।
आपकी ढाई लाईनें पढ के तो मुझे कुछ कुछ ऐसा याद आ गया ,
ढाई आखर प्रेम के पढे सो.....
अद्भुत, कम शब्दों में बहुत कह देने की कला सबको नहीं आती
आपके शब्द इतने अच्छे लगे कि न केवल सुलभ भाई का शुक्रिया अदा किया बल्कि आपके ब्लॉग को पसंद कि सूची में डाल दिया है...शुक्रिया और बधाई...!
Wah..! Chitr aur rachna dono behad sundar hain! Mere paas alfaaz nahee..
ललित जी आनंद आ गया
मुझे तो समझ में भी आई पसंद भी
सुकुल जी
कविता में मेकेनिज्म के पारखी
सिद्ध होते भये
ढन टेणन ....ढन........ढन