क्या प्रलय
एवं स्थिति में
मात्र
एक बूँद का
फासला है?
कांप जाता हूँ
किसी अनिष्ट की
आशंका से
जब डबडबाती है
तेरी आँखें
ब्रह्माण्ड में घूमता हुआ
"हैल्बाप"
भीतर तक डरा जाता है,
यदि टपक जाए
तो धरती
रसातल में चली जायेगी
संतुलन बिगड़ जाएगा
सभी आकर्षण में बंधे हैं
बंधे हैं ,जाने अनजाने बन्धनों में
सूर्य का आकर्षण बाँध लेता है सबको
सभी छोटे बड़ों को
जीवन एवं मृत्यु का
यह निकट का फासला है
बूँद
जीवन/मृत्यु है
मर्यादा के बंधन से
इसे निकलने ना देना
वरना
इस महाप्रलय की
महाविनाश का बोझ लेकर
तुम भी जी न सकोगे
बूँद को सागर में ही रहने दो
आपका
शिल्पकार,
(फोटो गूगल से साभार)
सुन्दर रचना!
क्या प्रलय
एवं स्थिति में
मात्र
एक बूँद का
फासला है?
कांप जाता हूँ
किसी अनिष्ट की
आशंका से
जब डबडबाती है
तेरी आँखें
टुकड़े है मेरे दिल के ऐ यार तेरे आंसू
देखे नाहे जाते दिलदार तेरे आंसू ....................!
बहुत खूब ललित जी !
शुद्ध शिल्पकार कविता।
'कवयाम वयाम याम'याद आ गया।
आभार।
बहुत सुंदर रचना, ललित भाई
बेहतरीन। लाजवाब। आपको नए साल की मुबारकबाद।
waah waah aur waah ! bahut hi sundar bhav.
achchhi kavita. jhakjhorati hui...
सुन्दर भाव-नायाब अभिव्यक्ति!!
बूँद सागर में ही रहने दो
प्रलय की कल्पना का सुन्दर चित्रण
बेमिसाल रचना.
रामराम.