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कविता का स्वंयवर!!

नव वधु सी
लजाती 
सकुचाती आई
वह कविता
बिना टिप्पणी
बैरंग लिफ़ाफ़े सी
लौट आई
वह कविता
कुछ दिन बाद
कविता का स्वंयवर
रचा गया
कर माल लिए
रावण को वर आई
वह कविता
क्योंकि
भरी सभा मे
रावण ने धनुष
खंडित किया 
अप्रीतम को
वर आई 
वह कविता


आपका
शिल्पकार

Comments :

23 टिप्पणियाँ to “कविता का स्वंयवर!!”
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…
on 

वाह ललित जी!
वर्तमान परिवेश को जीवन्त कर दिया है
आपने अपनी रचना में।।
सुन्दर रचना!

अजय कुमार झा ने कहा…
on 

वाह सर इस शिल्पकार के मुख से तो जब भी जो भी निकलता है , अद्भुत अप्रतिम होता है .....कमाल है रावण को वरना
अजय कुमार झा

बाल भवन जबलपुर ने कहा…
on 

रावण को वर आई
वह कविता

बाल भवन जबलपुर ने कहा…
on 

जब कविता ब्याह गई तो टिप्पणी का दहेज़ ले ही लीजिये

बाल भवन जबलपुर ने कहा…
on 

जब कविता ब्याह गई तो टिप्पणी का दहेज़ ले ही लीजिये

राजीव तनेजा ने कहा…
on 

वाह...नई सोच के साथ ..नए संदर्भ में लिखी गई सुंदर कविता

M VERMA ने कहा…
on 

यथार्थ बयान
सुन्दर चित्रण
पर कविता को सजग होना ही होगा - अप्रीतम का वरण तो न करे.

Unknown ने कहा…
on 

सुन्दर अभिव्यक्ति!

ललित जी, यही तो अन्तर है त्रेता और कलि में। त्रेता में राम वरा जाता है पर कलियुग में तो रावण का ही वर्चस्व होता है।

36solutions ने कहा…
on 

वाह भाई, राम और रावण की सुन्‍दर परिभाषा.

निर्मला कपिला ने कहा…
on 

हमारा भी शगुन ले लीजिये टिप्पणी के लिफाफे मे आभार्

Unknown ने कहा…
on 

कविता की शादी मे ब्लोगर है दीवाना
रावण का लोहा हम सबने भी माना
कलयुग के नये खेल नये स्वयम्बर है
हम भी क्या करे रावन का है जमाना

रवि कुमार, रावतभाटा ने कहा…
on 

बेहतर...अभिव्यंजना...
बेरंग लिफ़ाफ़े की तरह लौटने के बाद...
कविता का अवमूल्यन हुआ है...

यह भी ठीक तो नहीं...

पी.सी.गोदियाल "परचेत" ने कहा…
on 

कविता का स्वंयवर
रचा गया
कर माल लिए
रावण को वर आई
वह कविता
क्योंकि
भरी सभा मे
रावण ने धनुष
खंडित किया
अप्रीतम को
वर आई
वह कविता

और फिर इक रोज
रावण की हो गई कविता
क्योकि उसे कोई राम न मिला
बहुत खूब गुरूजी !

Amrendra Nath Tripathi ने कहा…
on 

मिथक को इतना सटीक ढंग से
प्रयोग किया कि ... पूछिए मत ! ...

vandana gupta ने कहा…
on 

HAR BAAR RAAM NHI MILA KARTE SHAYAD ISILIYE RAVAN KA VARAN HONE LAGA HAI........BEHAD UMDA PRASTUTI.

Dev ने कहा…
on 

बहुत खूब .....लिखा आपने

Murari Pareek ने कहा…
on 

कविता की व्यथा कहें या कविता की मजबूरी!! सही बयां किया है !

विनोद कुमार पांडेय ने कहा…
on 

अत्यन्त सुंदर भाव....बढ़िया लगी...धन्यवाद ललित जी

मनोज कुमार ने कहा…
on 

यह रचना व्यंग्य नहीं, व्यंग्य की पीड़ा है। पीड़ा मन में ज़ल्दी धंसती है।

Udan Tashtari ने कहा…
on 

बेहद सुन्दर..वाह ललित भाई.

Pt. D.K. Sharma "Vatsa" ने कहा…
on 

वाह्! बेहद कमाल की रचना....
गजब!

drsatyajitsahu.blogspot.in ने कहा…
on 

KAVITA APKI ACCHI HAI

शरद कोकास ने कहा…
on 

कविता को वधु की तरह नही तमंचे की तरह भेजो देखते है कौन सम्पादक लौटाता है ।

 

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