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रफ़्तार
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गुगल बाबा

इंडी ब्लागर

 

अब बोझा उतार दो एटलस!!

बसंतागमन
जुझ रही हैं कोहरे से 
सुर्यकुमारियाँ 
किसी मजदुर की तरह 
एक जुन की रोटी के लिए 
बोझा ढोता एटलस
पृथ्वी का भार
कांधे  पर लादे
चलता है अनवरत
भुख मिटाने के लिए
पर्चे बांटे जा रहे हैं
बाजार मे
भुख मिटाने वाला
सल्युशन बनकर है
तैयार
अब बोझा उतार दो
एटलस


आपका
शिल्पकार

Comments :

15 टिप्पणियाँ to “अब बोझा उतार दो एटलस!!”
Gyan Darpan ने कहा…
on 

बढ़िया रचना !!

Murari Pareek ने कहा…
on 

bahut badhiya!!!

Udan Tashtari ने कहा…
on 

शानदार!! काश, एटलस ऐसा कर पाता!

Unknown ने कहा…
on 

सुन्दर रचना!

डॉ. मनोज मिश्र ने कहा…
on 

वाह,सुंदर.

Mithilesh dubey ने कहा…
on 

बेहद खूबसूरत रचना ।

पी.सी.गोदियाल "परचेत" ने कहा…
on 

मत करो ऐसी चकलस,
मत कहो कि
तुम बोझा उतार तो एटलस,
नाराज होकर,
धरती कहर ढा जायेगी,
अगर एटलस ने
आपका कहा मान लिया तो
क़यामत आ जायेगी !!

ताऊ रामपुरिया ने कहा…
on 

बहुत जबरदस्त सोच और लाजवाब संप्रेषण.

रामराम.

Kulwant Happy ने कहा…
on 

भावविभोर कर गई।

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…
on 

बाजार मे
भुख मिटाने वाला
सल्युशन बनकर है
तैयार
अब बोझा उतार दो
एटलस

वाह क्या आइडिया है जी!

सुशीला पुरी ने कहा…
on 

कोहरे की चादर ओढ़ आया है वसंत ...बर्फ की उजली सतह से देखो !!!!

राज भाटिय़ा ने कहा…
on 

बहुत सुंदर रचना, वेसे मुझे तो अपनी एटलस साईकिल याद आ गई, जिस पर हम भी बोझा ले कर पिसबाने जाते थे

रवि कुमार, रावतभाटा ने कहा…
on 

अब बोझा उतार दो एटलस...

बेहतर...

दीपक 'मशाल' ने कहा…
on 

Raj ji ke jaisa hi kuchh maine samjha tha sheershak padh ke.
aapki soch ko salaam
Jai Hind...

दीपक 'मशाल' ने कहा…
on 

Raj ji ke jaisa hi kuchh maine samjha tha sheershak padh ke.
aapki soch ko salaam
Jai Hind...

 

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