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गुगल बाबा

इंडी ब्लागर

 

जब डबडबाती है तेरी आँखें!!!!


क्या प्रलय
एवं स्थिति में
मात्र
एक बूँद का
फासला है?
कांप जाता हूँ
किसी अनिष्ट की
आशंका से
जब डबडबाती है
तेरी आँखें
ब्रह्माण्ड में घूमता हुआ
"हैल्बाप"
भीतर तक डरा जाता है,
यदि टपक जाए
तो धरती
रसातल में चली जायेगी
संतुलन बिगड़ जाएगा
सभी आकर्षण में बंधे हैं
बंधे हैं ,जाने अनजाने बन्धनों में
सूर्य का आकर्षण बाँध लेता है सबको
सभी छोटे बड़ों को
जीवन एवं मृत्यु का
यह निकट का फासला है
बूँद
जीवन/मृत्यु है
मर्यादा के बंधन से
इसे निकलने ना देना
वरना
इस महाप्रलय की
महाविनाश का बोझ लेकर
तुम भी जी न सकोगे
बूँद को सागर में ही रहने दो

आपका
शिल्पकार,

(फोटो गूगल से साभार)

Comments :

10 टिप्पणियाँ to “जब डबडबाती है तेरी आँखें!!!!”
Unknown ने कहा…
on 

सुन्दर रचना!

पी.सी.गोदियाल "परचेत" ने कहा…
on 

क्या प्रलय

एवं स्थिति में

मात्र

एक बूँद का

फासला है?

कांप जाता हूँ

किसी अनिष्ट की

आशंका से

जब डबडबाती है

तेरी आँखें

टुकड़े है मेरे दिल के ऐ यार तेरे आंसू
देखे नाहे जाते दिलदार तेरे आंसू ....................!
बहुत खूब ललित जी !

गिरिजेश राव, Girijesh Rao ने कहा…
on 

शुद्ध शिल्पकार कविता।
'कवयाम वयाम याम'याद आ गया।
आभार।

राज भाटिय़ा ने कहा…
on 

बहुत सुंदर रचना, ललित भाई

मनोज कुमार ने कहा…
on 

बेहतरीन। लाजवाब। आपको नए साल की मुबारकबाद।

vandana gupta ने कहा…
on 

waah waah aur waah ! bahut hi sundar bhav.

girish pankaj ने कहा…
on 

achchhi kavita. jhakjhorati hui...

Udan Tashtari ने कहा…
on 

सुन्दर भाव-नायाब अभिव्यक्ति!!

सूर्यकान्त गुप्ता ने कहा…
on 

बूँद सागर में ही रहने दो
प्रलय की कल्पना का सुन्दर चित्रण

ताऊ रामपुरिया ने कहा…
on 

बेमिसाल रचना.

रामराम.

 

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