शिल्पकार. Blogger द्वारा संचालित.

चेतावनी

इस ब्लॉग के सारे लेखों पर अधिकार सुरक्षित हैं इस ब्लॉग की सामग्री की किसी भी अन्य ब्लॉग, समाचार पत्र, वेबसाईट पर प्रकाशित एवं प्रचारित करते वक्त लेखक का नाम एवं लिंक देना जरुरी हैं.
रफ़्तार
स्वागत है आपका

गुगल बाबा

इंडी ब्लागर

 

शाम से सोचता रहा माज़रा क्या हैं?


देख  कुछ गुलाब लाया हूँ  तेरे लिए 
तोहफे  बेहिसाब लाया  हूँ  तेरे लिए
चश्मेबद्दूर नज़र ना लगे  तुझे कभी
इसलिए नकाब भी लाया हूँ तेरे लिए


अभी तो आई अभी ही चली गयी 
जिन्दगी कैसे  छलती  चली गयी
घूँघट उठाया जैसे ही दुल्हन  का
बड़ी बेवफा थी बिजली चली  गई



मेरे शहर  में कई इज्ज़त वाले  रहते हैं
लेकिन वो  इज्ज़त  देते  नहीं हैं ,लेते हैं
दो रोटियों का खुशनुमा अहसास देकर 
हमारे  तन  के  कपडे  भी  उतार लेते हैं


शाम    से  सोचता   रहा  माज़रा  क्या हैं
चाँद हैं   अगर तो  निकलता क्यूँ नहीं  हैं 
कब तक रहेगा यूँ ही इंतजार का आलम 
क्या नया चाँद कारखाने में ढलता नहीं हैं


तपती  धुप   में  छाँव  को तरसती हैं जिंदगी
भागते शहर में गांव को तरसती हैं  जिन्दगी 
शहर जला था जब से दंगे की आग में लोगो 
उस बूढे बरगद की छावं को तरसती हैं जिंदगी


आपका
शिल्पकार




Comments :

9 टिप्पणियाँ to “शाम से सोचता रहा माज़रा क्या हैं?”
पी.सी.गोदियाल "परचेत" ने कहा…
on 

देख कुछ गुलाब लाया हूँ तेरे लिए

तोहफा बेहिसाब लाया हूँ तेरे लिए

चश्मेबद्दूर नज़र ना लगे तुझे कभी

इसलिए इक नकाब लाया हूँ तेरे लिए !!

बहुत खूब ललित जी, रंगीन मूड में लग रहे है आप आज !

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) ने कहा…
on 

बिजली विभाग के खिलाफ फिर आपने शिकायत की कि नहीं?

निर्मला कपिला ने कहा…
on 

तपती धुप में छाँव को तरसती हैं जिंदगी
भागते शहर में गांव को तरसती हैं जिन्दगी
शहर जला था जब से दंगे की आग में लोगो
उस बूढे बरगद की छावं को तरसती हैं जिंदगी
बहुत सुन्दर कविता है । बधाई

Mithilesh dubey ने कहा…
on 

क्या बात है , लाजवाब .,...............

मनोज कुमार ने कहा…
on 

घूँघट उठाया जैसे ही दुल्हन का

बड़ी बेवफा थी बिजली चली गई

बेहतरीन। बधाई।

Unknown ने कहा…
on 

kyaa kahne !

mazaa aa gaya..........

waah waah !

vandana gupta ने कहा…
on 

तपती धुप में छाँव को तरसती हैं जिंदगी
भागते शहर में गांव को तरसती हैं जिन्दगी
शहर जला था जब से दंगे की आग में लोगो
उस बूढे बरगद की छावं को तरसती हैं जिंदगी

behtreen..........sabhi tarah ke ahsaas ek sath pesh kar diye........bahut khoob.

Pt. D.K. Sharma "Vatsa" ने कहा…
on 

"मेरे शहर में कई इज्ज़त वाले रहते हैं
लेकिन वो इज्ज़त देते नहीं हैं ,लेते हैं
दो रोटियों का खुशनुमा अहसास देकर
हमारे तन के कपडे भी उतार लेते हैं"

बहुत ही बढिया रचना....एकदम लाजवाब्!
आड्डै ब्लागजगत मैंह बी तो इसे कुछ लोग मिल ज्यांगे :)

अजय कुमार झा ने कहा…
on 

कुछ मौसम का असर है ,
कुछ है उनकी नज़रों का कसूर,
आज तो सितम पे सितम ,
नज़रों से ही ढाते जा रहे हैं हुजूर

वाह शर्मा जी ....आज तो बस यही कह सकता हूं सुभान अल्लाह ....

 

लोकप्रिय पोस्ट

पोस्ट गणना

FeedBurner FeedCount

यहाँ भी हैं

ईंडी ब्लागर

लेबल

शिल्पकार (94) कविता (65) ललित शर्मा (56) गीत (8) होली (7) -ललित शर्मा (5) अभनपुर (5) ग़ज़ल (4) माँ (4) रामेश्वर शर्मा (4) गजल (3) गर्भपात (2) जंवारा (2) जसगीत (2) ठाकुर जगमोहन सिंह (2) पवन दीवान (2) मुखौटा (2) विश्वकर्मा (2) सुबह (2) हंसा (2) अपने (1) अभी (1) अम्बर का आशीष (1) अरुण राय (1) आँचल (1) आत्मा (1) इंतजार (1) इतिहास (1) इलाज (1) ओ महाकाल (1) कठपुतली (1) कातिल (1) कार्ड (1) काला (1) किसान (1) कुंडलियाँ (1) कुत्ता (1) कफ़न (1) खुश (1) खून (1) गिरीश पंकज (1) गुलाब (1) चंदा (1) चाँद (1) चिडिया (1) चित्र (1) चिमनियों (1) चौराहे (1) छत्तीसगढ़ (1) छाले (1) जंगल (1) जगत (1) जन्मदिन (1) डोली (1) ताऊ शेखावाटी (1) दरबानी (1) दर्द (1) दीपक (1) धरती. (1) नरक चौदस (1) नरेश (1) नागिन (1) निर्माता (1) पतझड़ (1) परदेशी (1) पराकाष्ठा (1) पानी (1) पैगाम (1) प्रणय (1) प्रहरी (1) प्रियतम (1) फाग (1) बटेऊ (1) बाबुल (1) भजन (1) भाषण (1) भूखे (1) भेडिया (1) मन (1) महल (1) महाविनाश (1) माणिक (1) मातृशक्ति (1) माया (1) मीत (1) मुक्तक (1) मृत्यु (1) योगेन्द्र मौदगिल (1) रविकुमार (1) राजस्थानी (1) रातरानी (1) रिंद (1) रोटियां (1) लूट (1) लोकशाही (1) वाणी (1) शहरी (1) शहरीपन (1) शिल्पकार 100 पोस्ट (1) सजना (1) सजनी (1) सज्जनाष्टक (1) सपना (1) सफेदपोश (1) सरगम (1) सागर (1) साजन (1) सावन (1) सोरठा (1) स्वराज करुण (1) स्वाति (1) हरियाली (1) हल (1) हवेली (1) हुक्का (1)
hit counter for blogger
www.hamarivani.com