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देख शीश शर्म से झुक जायगा!!!!

देख शीश शर्म से झुक जायेगा
नैतिकता के पतन के खुले हुए द्वारों को देखो
महामुनियों की धरा पर अत्याचारों को देखो
नित्य अबलाओं पर हो रहे व्यभिचारों को देखो
देश धर्म पर टंगी हुयी तुम तलवारों को देखो


देख शीश शर्म से झुक जायेगा  
नीति मार्ग पर मायावी तम का घेरा है देखो
राज गद्दी पर चमचों-चापलूसों का डेरा है देखो
चोरों पर चौकीदारी का बंधा सेहरा है देखो
अंधेर नगरी में चौपट राजा का बसेरा है देखो


देख शीश शर्म से झुक जायेगा
चौराहे पर होता है द्रौपती का चीरहरण देखो
रक्षक के हाथों ही होता है आज मरण देखो
देश द्रोहियों को दुश्मनों देशों की शरण देखो
राजनीति व अपराध का घृणित समीकरण देखो   
देख शीश शर्म से झुक जायगा


आपका
शिल्पकार कविता

Comments :

10 टिप्पणियाँ to “देख शीश शर्म से झुक जायगा!!!!”
Unknown ने कहा…
on 

"देख शीश शर्म से झुक जायेगा
नैतिकता के पतन के खुले हुए द्वारों को देखो
महामुनियों की धरा पर अत्याचारों को देखो
नित्य अबलाओं पर हो रहे व्यभिचारों को देखो
देश धर्म पर टंगी हुयी तुम तलवारों को देखो"


नंगा सच कह दिया आपने ललित जी!

पी.सी.गोदियाल "परचेत" ने कहा…
on 

देख शीश शर्म से झुक जायेगा

चौराहे पर होता है द्रौपती का चीरहरण देखो

रक्षक के हाथों ही होता है आज मरण देखो

देश द्रोहियों को दुश्मनों देशों की शरण देखो

राजनीति व अपराध का घृणित समीकरण देखो

देख शीश शर्म से झुक जायगा

बेहद सुन्दर और यथार्थ को उजागर करती कविता, ललित जी !

समय चक्र ने कहा…
on 

नैतिकता के पतन के खुले हुए द्वारों को देखो
महामुनियों की धरा पर अत्याचारों को देखो
बहुत सटीक रचना अभिव्यक्ति . आ ज यही हो रहा है ..

Murari Pareek ने कहा…
on 

bahut sundar

Murari Pareek ने कहा…
on 

बहुत सुन्दर प्रस्तुति !!! ललित जी आप अपनी रचनाएँ मुझे sikkim@radiomisty.co.in पर भेजें subject में मिष्टी महफ़िल लिखें !! फिर लिखें की आपका शो सूना आपके ब्लॉग पर आपकी मिस्टी महफ़िल बहुत अच्छी लगी एक कविता भेज रहा हूँ फिर अपनी रचना और फिर अपना नाम लोकेशन !!!

alka mishra ने कहा…
on 

इस समस्या की जड़ काटनी पड़ेगी
हमें अपने लडको को भी संस्कार की वैसी ही शिक्षा देनी होगी जैसी हम लड़कियों को देते आये हैं

rashmi ravija ने कहा…
on 

बहुत सही तस्वीर खिंची है हमारे बदनसीब देश की ..पर कोई देखना चाहे तब तो देख, शर्म से आँखें झुका लें..यहाँ तो सब आँखे फेर लेते हैं,देखकर जैसे चारो तरफ सुख और शांति हो

Unknown ने कहा…
on 

bhai........vaakai sheesh jhuka hua hai aur itnaa jhuka hua hai ki ab aur zyaada jhukane ki zaroorat padi to kambakht toot-taat jaayega....

bahut badhiya aur maarak kavita hai jee badhaai !

aapki lekhni ko salaam !

ताऊ रामपुरिया ने कहा…
on 

बहुत लाजवाब.

रामराम.

मनोज कुमार ने कहा…
on 

एक बेहतरीन रचना के लिए बधाई।

 

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