कल रात को ताऊ की पहेली में समीर भाई ने मुशायरा छेड़ दिया और शेर, दोहे, त्रिवेणी, मुक्तक जग कर उठ खड़े हुए जो कुछ मन में लहर उठी उसे हम भी गरम गरम परोसते गए, बड़ा आनंद आ रहा था. अब एक शेर तात्कालिक रूप से बना उसे लेकर एक गजल पूरी करने बैठ गए, चलो अब सुर चल रहा है तो उसे आगे बढाया जाये. लेकिन जब शुरू हुए तो एक-एक कड़ी समस्या बनकर फँस गई, रात के १२ बज चुके थे और हम इन शेरों से जूझ रहे थे. आखिर कुछ बन ही गया. लेकिन संतुष्टि नहीं हुयी, अब जैसा भी बन पड़ा उसे प्रस्तुत कर रहा हूँ अगर कहीं त्रुटी हो तो आप सुधार दे, महती कृपा होगी
हौले हौले दिल को हम मनाते रहे
गुलदस्तों में नये फूल सजाते रहे
सोच कर अभी वो आने वाले हैं इधर
सारी रात बुखारी में लकड़ियाँ जलाते रहे
सजा रखी हैं हमने सेज सूखे फूलों से
जिन्हें सालों से ज़माने से छिपाते रहे
उनकी मासूमियत के क्या कहने हैं यारों
आते ही शिकवों के खंजर चलाते रहे
हमदर्द समझ उनको जख्म दिखाए"ललित"
वो कातिल अदा के साथ नमक लगाते रहे
आपका
शिल्पकार
मुहब्बत इक तिजारत हो गई है
तिजारत इक मुहब्बत हो गई है
किसी के दिल से खेल लेना
हसीनों की ये आदत हो गई है...
जय हिंद...
आए हाय, आपने क्या बढ़ाया है...
आज तो दिल तुम्हीं पर आया है..
-छा गये भाई मेरे!!
यह अत्यंत हर्ष का विषय है कि आप हिंदी में सार्थक लेखन कर रहे हैं।
हिन्दी के प्रसार एवं प्रचार में आपका योगदान सराहनीय है.
मेरी शुभकामनाएँ आपके साथ हैं.
निवेदन है कि नए लोगों को जोड़ें एवं पुरानों को प्रोत्साहित करें - यही हिंदी की सच्ची सेवा है।
एक नया हिंदी चिट्ठा किसी नए व्यक्ति से भी शुरू करवाएँ और हिंदी चिट्ठों की संख्या बढ़ाने और विविधता प्रदान करने में योगदान करें।
आपका साधुवाद!!
शुभकामनाएँ!
समीर लाल
उड़न तश्तरी
है जरूरत सँवारें गजल को कभी
मजा लेकर सुमन गुनगुनाते रहे
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
सुन्दर शब्दो मे दर्द की छटपटाहट. धन्यवाद
बहुत अच्छा रचना है.. जो नहीं बदली उसकी वो है कातिल अदा...
शौचालय से सोचालय तक
वो कातिल अदा के साथ नमक लगाते रहे...
Bahut hi sarthak rachna hai... badhai sweekaare....!
बहुत ही लाजवाब भाई.
नया साल की रामराम.
रामराम.
sundar koshish...isi tarah likhate rahe. yahee sarjanatmakta hame sukoon degi.
sundar koshish...isi tarah likhate rahe. yahee sarjanatmakta hame sukoon degi.
सजा रखी हैं हमने सेज सूखे फूलों से
जिन्हें सालों से ज़माने से छिपाते रहे
वाह.. क्या ख़ूब। बहुत-बहुत धन्यवाद
आपको नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं।
हमदर्द समझ उनको जख्म दिखाए"ललित"
वो कातिल अदा के साथ नमक लगाते रहे
ललित भाई इन बेहरमो से तो बच कर भी नही रह सकते,लेकिन इस जलन मै भी तो मजा है, बहुत सुंदर गजल.
राम राम जी की
अच्छी रचना , बधाई !!
उनकी मासूमियत के क्या कहने हैं यारों
आते ही शिकवों के खंजर चलाते रहे
शिकवो के खंजर तो अपनो पर ही चलते हैं
सजा रखी हैं हमने सेज सूखे फूलों से
जिन्हें सालों से ज़माने से छिपाते रहे
झुरझुरी आ गई
सुंदर प्रयास
बी एस पाबला
वाह.
वाह भाई ज़ज्बात देखिए क्या क्या कर डाला आपने फिर भी दर्द मिला..बेहतरीन अभिव्यक्ति..बहुत बढ़िया..धन्यवाद ललित जी!!!
धन्य हैं आप , अदा के साथ जख्मों पर नमक लगाने वाले को हमदर्द बता रहे हैं ...!!
वाह वाह भाई ललित
वैसे भी आप शेर ठहरे त्रुटियाँ तो ढूँढने की
ताकत तो है नहीं हममें पर विचारों के सागर में गोते लगाते रहे
बहुत सुन्दर
kya baat hei ji ...yah to chamtkar ho gaya ....