अपने दिल की धडकनों से
तेरा नाम मिटा ना पाया
ख़त पढ़ कर रो दिया मै
जब भी तेरा ख्याल आया
मैं जीऊँगी साथ तेरे
मैं मरूंगी साथ तेरे
वो तेरा वादा तुझे
क्यों याद नहीं आया
रो-रो के ढूंढ़ता हूँ
पता मुकाम तेरा
कैसे पैगाम भेजूं
लिखा वो लौट आया
मैंने अब तलक जहाँ में
कोई ढूंढा नहीं सहारा
जाने क्यों खोके तुझको
अब खुद संभल ना पाया
आपका
शिल्पकार
विरह अग्नि की आग ही ऐसी है कि कभी बुझती नहीं
जाने क्यों खोके तुझको
अब खुद संभल ना पाया
बेहतरीन रचना. खोकर कौन संभला है भला
मैंने अब तलक जहाँ में
कोई ढूंढा नहीं सहारा
जाने क्यों खोके तुझको
अब खुद संभल ना पाया
-शिल्पकार का उम्दा शिल्प!!
मैंने अब तलक जहाँ में
कोई ढूंढा नहीं सहारा
जाने क्यों खोके तुझको
अब खुद संभल ना पाया
बहुत ही खूबसूरत पंक्तियाँ ..... बेहतर शिल्प के साथ बहुत बेहतरीन कविता....
मैंने अब तलक जहाँ में
कोई ढूंढा नहीं सहारा
जाने क्यों खोके तुझको
अब खुद संभल ना पाया ....
जिसको चाहो उसे खो कर फिर कहाँ संभाल पता है कोई .........
बेहतरीन पंक्तिया .......
किसी नज़र को तेरा इंतज़ार आज भी है...
जहां से हुए थे विदा,
तेरी वफ़ाओं का वहां मज़ार आज भी है...
जय हिंद...
मैंने अब तलक जहाँ में
कोई ढूंढा नहीं सहारा
जाने क्यों खोके तुझको
अब खुद संभल ना पाया
जबाब नही जी बहुत सुंदर
क्या वादा है यह होता है प्रेम ..बढ़िया रचना..बधाई