कल रात की बात है, हम कुछ लिख रहे थे तभी चैट पर हमारे बड़े भाई गिरीश पंकज जी का आगमन हुआ और उन्होंने पूछ "फौजी भाई क्या हाल चाल है" हमने कहा नमस्ते भैया सब ठीक है. आनंद है. आज आप हिंदी में लिख रहे हैं. तो गिरीश भाई बोले" कट पेस्ट का जमाना है इस लिए कट पेस्ट कर रहा हूँ" हमने कहा चलिए अच्छी बात है....
कट गया फट गया खिस्को हो गया. अब इसका मोल भी डिस्को हो गया.
तो गिरीश भाई बोले ये तो कविता हो रही है तुकबंदी" अब मित्रों इस तुक बंदी का सिलसिला चल पड़ा आगे चल कर क्या बना? ज्यों का त्यों आपके सामने प्रस्तु कर रहा हूँ. इस गजल लेखन को गिरीश भाई ने मजमुआ गजल कहा. अब ये मजमुआ गजल आपके समक्ष पेश है. कृपया आपका आशीर्वाद चाहूँगा.
Girish: अच्छे लोग किनारे हो गए/ मंचो पर हत्यारे हो गए
ललित: काले पीले सारे हो गए/सच्चे सब बेचारे हो गए
Girish: लुच्चो का है राज यहाँ पर/ श्वेत सभी कजरारे हो गए.
ललित: मेहनत कश को रोटी नही, चमचों के चटखारे हो गए
Girish: काम यहाँ कुछ कैसे होगा/ खाली-पीली नारे हो गए
ललित: डंडा लेकर घुमने वाले/उनकी आंखो के तारे हो गए
Girish: जो कमजोर बहुत थे वे ही. सत्ता के सहारे हो गए.
शातिर खुल्ले घूम रहे है. हम अल्ला को प्यारे हो गए....
ललित:सच की राह पे चलने वाले / देखो अब बेसहारे हो गए
Girish: सत्ता पाकर दो कौड़ी भी/ आसमान के तारे हो गए
ललित: छाती पीट पीट के लगाते थे/ झुठे वे सब नारे हो गए
खुन बह रहा है गलियों मे/ नेता सब हत्यारे हो गए
अब इस तरह यह मजमुआ गजल तैयार हो गई, जैसे थी वैसी ही प्रस्तुत कर रहा हूँ. आखरी की दो पंक्तियाँ
Girish: जैसे जिन्दगी एक जुआ हो गयी.
ललित: वैसे ही ग़ज़ल मजमुआ हो गयी
ललित: वैसे ही ग़ज़ल मजमुआ हो गयी
आपका
शिल्पकार
रोचक।
ये भी खूब रही !
चिट्ठाचर्चा डोमेन लेकर, लफड़े कितने सारे हो गये
:)
मुक्कमल गज़ल निखर आई...:)
..... कमाल-धमाल... छा गये....बहुत सुन्दर !!!
चिट्ठाचर्चा डोमेन लेकर, लफड़े कितने सारे हो गये
नीलामी की बात सुनी तो, सबके वारे न्यारे हो गये.. :)
मूँछें तेरी देख देख कर, डर कर बदली फितरत उनकी,
खूं में मिला नमक था जिनके, शक्कर वाले पारे हो गये.
-अब सोने जा रहे हैं, गुड नाइट, फौजी भाई!!
Girish: जैसे जिन्दगी एक जुआ हो गयी.
ललित: वैसे ही ग़ज़ल मजमुआ हो गयी
वाह लाजवाब
इस अप्रत्याशित साझी कविता नुमा ग़ज़ल के लिए मैं नत मस्तक हूँ गुरु देव
गज़ल मजमुआ ही सही पर वार करारे हो गये
साथी हाथ बढ़ाना ...साथी रे...
एक अकेला थक जाएगा मिलकर बोझ उठाना ...
एक और एक सच में ग्यारह हो गए यहाँ तो...
बहुत ही बढ़िया
वाह ये प्रयोग तो बहुत बढ़िया रहा!
दोनों को बधाई!
हारी बाज़ी जीतना आता है,
इसीलिए वो शेरसिंह कहलाता है...
जय हिंद...
बहुत खूब, गुरूजी बढ़िया समा बाँधा दो कलाकारों ने !
अच्छी है ये चैटिंग गजल
बहुत सुंदर लगी आप की यह सुंदर सुंदर तुंक बंदी, लेकिन अब तो यह तुंक बंदी नही एक सुंदर रचना बन गई
Gazal Jodi
चाल्हे पाड दिये फ़ौजी तन्नै तो. लाग्या रह ..इब पौ पाटन आली सै.:)
रामराम.
खूब रही...
जो आँखों के नूर थे बेनूर हो गए ...
wah badhiya jugalbandi rahi
ye style bhi bahut badhiya raha.
मन मोहाय गवा इहाँ ---
'' लुच्चो का है राज यहाँ पर/ श्वेत सभी कजरारे हो गए. ''
इसतरह से भी पोस्टें आती हैं ! जान कर मजा आया !
....... आभार ,,,
waah bhai waah !
waah bhai waah !
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यूँ के हमें ज्यादा बात करने की तो आदत है नहीं लेकिन एक बात साफ साफ कहे देते हैं कि ये जो भी चीज बनी है,एकदमजोरदार,शानदार,मजेदार ओर बाकी भी जितने दार हैं,वे भी लगा लीजिए :)
excellent
यूं ही लिखते-लिखते ब्लागर कितने सारे हो गये,
इन्हीं सारी हरकतों से आप सब के प्यारे हो गये।
क्या बात है पहली टिप्पणी ही "बेनामी" है।
वाह सर, कई साल पहले मैंने और मेरे एक सीनिअर ने मिल के ऐसे ही एक कविता का सृजन किया था.. अब तो वो सीनिअर बड़े वैज्ञानिक हो गए हैं.... आपने याद ताज़ा कर दी
बहुत ही उत्तम रचना लगी.. सुन्दर जुगलबंदी.. आपकी नक़ल करके मैं भी वो रचना आज पोस्ट करूंगा.. शायद इतनी सुन्दर तो नहीं है लेकिन फिर भी..
जय हिंद... जय बुंदेलखंड...
बातों बातों में तो यहाँ अच्छी रचना तैयार हो गयी...बहुत खूब
agar sadharan si baate karte karte achhi cheez nikal aati hai to ise adbhut kahna chahiye .......bahut gazab
VIKAS PANDEY
बहुत खूब , आंनद आ गया ।
अच्छा तो गिरिजेश जी का यह वायरस ललित जी तक भी पहुंच गया .. बहुत ही तगड़ा वायरस है भाई अच्छों अच्छों को कवि बना देता है बचके रहना रे बाबा ...
अय हय फ़ौजी भाई ग़ज़ले-ग़ज़ब है जी यह तो ।
मान गए उस्ताद। बेहतरीन रचना।
बहुत सुन्दर मजमुआ गजल भैया. धन्यवाद.
Jugal bandi jordaar rahi .....
बातो ही बातो में निकली बात आम से ख़ास हो गई...
जगजीत सिंह जी कि लाइन याद आ रही है..
"बात निकलेगी तो दूर तलक जाएगी ........"
अब तो अलबेला जी ने इतनी वाह कर दी है कि सारा स्टाक ही ख़त्म हो गया ,अब तो डीपो से परमिट बनवाना पड़ेगा
वाह वाह!
क्या बात है, हम कहाँ चल बसे थे
सचमुच हमारे लिए आपकी ये ग़ज़ल
झाँकने के लिए
अँधेरे सब गलियारे हो गये थे
जैसा कि हौवा बना हुआ थे हमारे विभाग में