सुरसा मुख सी
बढती मंहगाई
कोल्हु के बैल कंधों पर
गृहस्थी का जुड़ा डाले
प्राण वायु मे घुलता जहर
रसायन से मौत उगलते खेत
बोझ से झुकी कमर
दीमक लगी उमर
जो नित चाट रही
जीवन रेखा
घुटने साथ नही देते
लेकिन
वो कहते हैं
बसंत बुढा नही होता
कोई उनसे पूछे
मोतियाबिंद से
अंधी हुई आंखे लेकर
मधुमेह ग्रसित
देह लेकर
धृतराष्ट्री व्यवस्था में
कब तक युवा रहेगा
बसंत
आपका
शिल्पकार
कब तक युवा रहेगा बसंत?
ब्लॉ.ललित शर्मा, गुरुवार, 21 जनवरी 2010
लेबल:
कविता,
चिट्ठा जगत,
ब्लाग प्रहरी,
ब्लाग वाणी,
ललित शर्मा,
शिल्पकार
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
उफ्फ!! गहरी बात!!
यह कविता'शरद कोकास' की संगति के असर से तो नहीं उपजी !
@ बोझ से झुकी कमर
दीमक लगी उमर
जो नित चाट रही
जीवन रेखा
घुटने साथ नही देते
लेकिन
वारे गए !!
हा हा हा
गिरजेश भाई,
शरद के बाद ही बसंत आता है।
इसलिए शरद से भी होकर गुजरना पड़ता है।
चिट्ठाकार चर्चा
बहुत अच्छी रचना शुभकामनायें
"कब तक युवा रहेगा बसंत?"
भाई ललित जी, वसन्त ने तो चिर-यौवन पाया है फिर आप ऐसा प्रश्न क्यों कर रहे हैं? यदि वसन्त ने आपकी इस रचना को पढ़ लिया तो वह "दुष्यन्त कुमार" के जैसा यह कहेगाः
मँहगाई और गृहस्थी के बोझ ने मिलकर मादकता को भुला दिया होगा, मैं बूढ़ा कभी हुआ ही नहीं आपको धोखा हुआ होगा ...
बसंत ओ पैदायशी युवा है. बस व्यवस्था के खिलाफ़ उसको कमर क्सनी होगी.
रामराम.
लोगों के ही राथ में बूढ़ा हुआ वसंत।
मँहगाई की मार से झेले कष्ट अनंत।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
कब तक युवा रहेगा
बसंत....
वाकई गहरी बात कह गये आप.
वो कहते हैं
बसंत बुढा नही होता
कोई उनसे पूछे
मोतियाबिंद से
अंधी हुई आंखे लेकर
मधुमेह ग्रसित
देह लेकर
धृतराष्ट्री व्यवस्था में
कब तक युवा रहेगा
बसंत ?
बहुत सुन्दर कविता और विचारणीय प्रश्न ललित जी
धृतराष्ट्री व्यवस्था में
कब तक युवा रहेगा
बसंत ?
सही ब्यान किया है.
लाख टके का प्रश्न। बहुत सटीक रचना।
@ललित जी
हा हा हा
गिरजेश भाई,
शरद के बाद ही बसंत आता है।
इसलिए शरद से भी होकर गुजरना पड़ता है।
नहले पे दहला ,,,हा हा हा
अरे हम खुद धृतराष्ट्र हुए जा रहे हैं आज कल... दिन रात कंप्यूटर के सामने बैठे रहे हो धृतराष्ट्र नहीं तो गांधी तो हो ही जावेंगे न...
बढ़िया लिखते हैं आप ...
गाँधी नहीं बाबा गांधारी ..:):)
वैसी गाँधी भी ठीक ही है....
रसायन से मौत उगलते खेत
बोझ से झुकी कमर
दीमक लगी उमर
जो नित चाट रही
बहुत सुंदर रचना आप से सहमत है जी
वाह भैया, वयस्था पर करारा चोट, गिरिजेश जी की टिप्पणी भी.
धृतराष्ट्री व्यवस्था का बढिया चित्र खींचा आपने, धन्यवाद.