पनघट मैं जाऊं कैसे, छेड़े मोहे कान्हा
पानी नहीं है, जरुरी है लाना
बहुत हुआ मुस्किल, घरों से निकलना
पानी भरी गगरी को,सर पे रख के चलना
फोडे ना गगरी, बचाना ओ बचाना
पनघट मैं जाऊं कैसे,छेड़े मोहे कान्हा
पानी नहीं है, जरुरी है लाना
गगरी तो फोडी कलाई भी ना छोड़ी
खूब जोर से खींची और कसके मरोड़ी
छोडो जी कलाई, यूँ सताना ना सताना
पनघट मैं जाऊं कैसे,छेड़े मोहे कान्हा
पानी नहीं है, जरुरी है लाना
मुंह नहीं खोले बोले उसके नयना
ऐसी मधुर छवि है खोये मन का चयना
कान्हा तू मुरली बजाना ओ बजाना
पनघट मैं जाऊं कैसे,छेड़े मोहे कान्हा
पानी नहीं है, जरुरी है लाना
आपका
शिल्पकार
फोटो गूगल से साभा
ओए लकी, लकी कान्हा ओए...
जय हिंद...
मुंह नहीं खोले बोले उसके नयना
ऐसी मधुर छवि है खोये मन का चयना
कान्हा तू मुरली बजाना ओ बजाना
पनघट मैं जाऊं कैसे,छेड़े मोहे कान्हा
पानी नहीं है, जरुरी है लाना...
वाह,अच्छी रचना.
सुन्दर कविता!
चुनि चुनि कंकर सैल चलावत
गगरी करत निसानी।
जाने दे जमुना पानी
मोहन जाने दे जमुना पानी।
सुंदर...अति सुंदर ...
बचपन में देखी कृष्ण जी की रासलीला याद आ गई
वाह जी..कान्हा ..!!बढ़िया!
पनघट मैं जाऊं कैसे,छेड़े मोहे कान्हा
पानी नहीं है, जरुरी है लाना
मुंह नहीं खोले बोले उसके नयना
ऐसी मधुर छवि है खोये मन का चयना
कान्हा तू मुरली बजाना ओ बजाना
वाह, बढ़िया ललित जी !
बहुत सुंदर,
रामराम.
वाह ,,,
''मोहे पनघट पै नन्द लाल छेडी गयो रे ... ''
और ,,,
'' बहुत कठिन है डगर पनघट की ...''
के बाद वैसा प्रभाव दिखाता , सुन्दर प्रयत्न ... अच्छा लगा ..
........ आभार ,,,
सुन्दर चित्र!
बढ़िया गीत!!
बधाई!
आपकी शैली देख कर चमत्कृत और प्रभावित हुआ। कृपया बधाई स्वीकारें।
बहुत सुंदर लगी आप की यह रचना