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गुगल बाबा

इंडी ब्लागर

 

काठ का चाँद!!!

(१)
खुली  
खिड़की
उतरी उषा 
किरणों के साथ
तुम सोते रहे


(२)
काठ का चाँद
क्या रौशन करेगा?
आकाश
तुम्हारे लिए  
है अमावश  


(३)
छटती  धुंध

टूटता तिलस्म
स्तब्ध यामिनी 
स्तब्ध गगन 
कोई साक्षी है




आपका
शिल्पकार,    

Comments :

12 टिप्पणियाँ to “काठ का चाँद!!!”
Kulwant Happy ने कहा…
on 

गजब एक साथ कितनी कविताएं

समय चक्र ने कहा…
on 

बहुत बढ़िया भाई ललित जी जोरदार रचना कम शब्दों में ....

dhiru singh { धीरेन्द्र वीर सिंह } ने कहा…
on 

शायद इसे ही हायकू कहते है

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…
on 

ये हाइकू तो नहीं हैं जी!
इन शब्द-चित्रों को तो
सीपिका कह सकते हैं!
आपने तो लोटे में सागर समा दिया है जी!

अजय कुमार झा ने कहा…
on 

इसे तो कहते हैं सच्चे शिल्पकार का शिल्प , अद्वितीय , अनुपम , अद्भुत

राज भाटिय़ा ने कहा…
on 

अदभुत! अति सुंदर ललित भाई आप की यह रचना.
धन्यवाद

मनोज कुमार ने कहा…
on 

अद्भुत। लाजवाब। शिल्पकार के अनोखे शिल्प। बधाई।

विनोद कुमार पांडेय ने कहा…
on 

शिल्पकार जी के ही यह काम हो सकते है..बेहतरीन शिल्प भाव के प्रस्तुत रचना में...बधाई ललित जी

Girish Kumar Billore ने कहा…
on 

खुली
खिड़की
उतरी उषा
किरणों के साथ
तुम सोते रहे
ललित जी हमको तो समझ में आ गई
अद्भुत कविता है

Udan Tashtari ने कहा…
on 

प्यारी क्षणिकाएँ. आनन्द आया.

ताऊ रामपुरिया ने कहा…
on 

गजब किया भाई, कमाल है.

रामराम

vandana gupta ने कहा…
on 

(२)
काठ का चाँद
क्या रौशन करेगा?
आकाश
तुम्हारे लिए
है अमावश

WAAH.........TITLE NE HI BAHUT KUCH KAH DIYA.........KITNI GAHAN SOCH HAI.......KATH KA CHAAND.......BEHAD KHOOBSOORAT BHAVAVYAKTI.

 

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