(१)
खुली
खिड़की
उतरी उषा
किरणों के साथ
तुम सोते रहे
(२)
काठ का चाँद
क्या रौशन करेगा?
आकाश
तुम्हारे लिए
है अमावश
(३)
छटती धुंध
टूटता तिलस्म
स्तब्ध यामिनी
स्तब्ध गगन
कोई साक्षी हैआपका
शिल्पकार,
(१)
खुली
खिड़की
उतरी उषा
किरणों के साथ
तुम सोते रहे
(२)
काठ का चाँद
क्या रौशन करेगा?
आकाश
तुम्हारे लिए
है अमावश
(३)
छटती धुंध
© Copyright by शिल्पकार के मुख से | Template by Blogspot tutorial
गजब एक साथ कितनी कविताएं
बहुत बढ़िया भाई ललित जी जोरदार रचना कम शब्दों में ....
शायद इसे ही हायकू कहते है
ये हाइकू तो नहीं हैं जी!
इन शब्द-चित्रों को तो
सीपिका कह सकते हैं!
आपने तो लोटे में सागर समा दिया है जी!
इसे तो कहते हैं सच्चे शिल्पकार का शिल्प , अद्वितीय , अनुपम , अद्भुत
अदभुत! अति सुंदर ललित भाई आप की यह रचना.
धन्यवाद
अद्भुत। लाजवाब। शिल्पकार के अनोखे शिल्प। बधाई।
शिल्पकार जी के ही यह काम हो सकते है..बेहतरीन शिल्प भाव के प्रस्तुत रचना में...बधाई ललित जी
खुली
खिड़की
उतरी उषा
किरणों के साथ
तुम सोते रहे
ललित जी हमको तो समझ में आ गई
अद्भुत कविता है
प्यारी क्षणिकाएँ. आनन्द आया.
गजब किया भाई, कमाल है.
रामराम
(२)
काठ का चाँद
क्या रौशन करेगा?
आकाश
तुम्हारे लिए
है अमावश
WAAH.........TITLE NE HI BAHUT KUCH KAH DIYA.........KITNI GAHAN SOCH HAI.......KATH KA CHAAND.......BEHAD KHOOBSOORAT BHAVAVYAKTI.