आज ढाई पंक्ति की ही कविता कहने का दिल है. ढाई पंक्ति में ही पूरी बात कहने की कोशिश करता हूँ. आपका आशीर्वाद चाहूँगा.
(१) .
बड़ी हवेली
ढहने लगी है अब
किसी ने पलीता लगा दिया
(2 )
बर्फ का हिमालय
आज पसीने से नहा गया
ज्वाला मुखी जो फुट रहा है
आपका
शिल्पकार,
बड़ी हवेली
ढहने लगी है अब
किसी ने पलीता लगा दिया,
इस कडाके की ठण्ड में
किसने ये ललित जी का
'काव्य-ललीता' जगा दिया ?
बर्फ का हिमालय
आज पसीने से नहा गया
ज्वाला मुखी जो फुट रहा है,
इस कडाके की ठण्ड में
ललित जी की कविता पढ़कर
धैर्य मेरा भी टूट रहा है !
वाह ललित जी! आपने तो गागर में सागर भर के रख दिया है!!
ये कविता कहाँ....ये तो बडा भारी व्यंग्य है :)
दर्द तो दर्द है! पिघलना !!! ओह!
कम शब्दों में गहरी बात...बहुत बढिया
बडे भाई जो दिल कहे वही कविता.
वक्त के पलीते से बडे बडे दरोदीवार उजड जाते है.
शव्दो के ज्वालामुखी एसे ही फूटते रहे ...........
बडी हवेली...
बहुत गहरी बत लिख दी आप ने
धन्यवाद
बहुत ही कठोर प्रहार है इन ढ़ाई पंक्तियों के द्वारा।
ढाई लाइन की पंक्तियों के रचना कार हो गये आप तो ढाई लाइन में ही कमाल कर दिए..बधाई ललित जी!!!
पलीता लगा दिया..... किसने लगाया ...क्यों लगाया ...
कमिटी बिठाई जायेगी ....
बर्फ का ज्वालामुखी ...अतिश्योक्ति वर्णन ...!!
इन्हे क्षणिकाएँ कहूँ या सीपिकाएँ।
दोनों शब्द-चित्र बहुत बढ़िया हैं।
@ वाणी जी, पहले आप ठीक से पढिए, मैने बर्फ़ का "ज्वाला मुखी नही, बर्फ़ का हिमालय" कहा है और इसमे अतिश्योक्ति आपको कहां से नजर आई? अभी भूवैज्ञानिकों ने शोध किया है कि हिमालय के नीचे एक बहुत बड़ा ज्वालामुखी मिला है और उसकी तश्वीरें भी जारी की गई है।
हम निहाल हैं। समझने वालों को क्या कहें! इसके पहले वाली कविता में इशारा कर दिए हैं।
अब देखिए मेरे भीतर जोर मार रहा है सो कह रहा हूँ। अर्ज किया है:
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बड़ी हवेली
ढहने लगी
लगा पलीता
।
बर्फ का हिमालय
पसीने पसीने
ज्वालामुखी फूटा।
शरद भैया से बँचवाइएगा।
टिप्पणी तो एक ही थी, पता नहीं कैसे बाद का हिस्सा ग़ायब हो गया। सो दुबारा दे रहा हूँ।
बहुत दिनन पर इत्थे आए
मन ही मन बहुते हरसाए
शिल्प शोभा देख पगलाए
देख रहे हैं दाएँ बाएँ।
धन्य भए महराज। ललित नाम सार्थक कर दिए।
सुंदर अति सुंदर. इस मौलिक सोच के लिये शाबासी ग्रहण करिये.
रामराम.
waah, bahut sundar