लड़ो, भिड़ो, श्रम करो, संघर्ष करो
घुटने टेक देने से जीत नहीं होती
खुरचते रहो, छिलते रहो, काटते रहो
समर्पण करने से जीत नहीं होती
झोंको, तोड़ो, काँटों को उखाड़ फेंको
हाथ खड़े करने से जीत नहीं होती
बिना चैन डटे रहो अंतिम साँस तक
डरके भागने से जीत नहीं होती
छोड़ते नहीं शिकारी सोई चिड़िया को
छोड़ते नहीं शिकारी सोई चिड़िया को
हार मानकर सोने से जीत नहीं होती
आपका
शिल्पकार
छोड़ते नहीं शिकारी सोई चिड़िया को
हार मानकर सोने से जीत नहीं होती
-जबरद्स्त उत्साह!! वाह!!
बहुत बढ़िया लिखे हस महराज!
अच्छा लिखा है
ललित जी ,एकदम सही बात कविता के माध्यम से,
गिरते है .. वो क्या गिरेंगे जो घुटनों के बल चलते है
बहुत ही ओजपूर्ण कविता है। बधाई।
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सांसद/विधायक की बात की तनख्वाह लेते हैं?
अंधविश्वास से जूझे बिना नारीवाद कैसे सफल होगा ?
हाथ खड़े करने से जीत नहीं होती
सुन्दर और प्रेरक रचना.
हौसला कभी कम ना हो,
दिल में कोई गम ना हो,
जिंदगी तो संघर्ष का नाम है,
लड़ते रहो जीत जाओगे..
बढ़िया प्रस्तुति...आभार
छोड़ते नहीं शिकारी सोई चिड़िया को
हार मानकर सोने से जीत नहीं होती
ललित जी बहुत सुंदर रचना