मैं टहल रहा था
एक शाम स्टेशन पर
आ रहे थे
मेरे पीछ-पीछे /कुछ कुत्ते
वे बतिया रहे थे
लेकर आदमी का नाम
एक दुसरे को लतिया रहे थे
पहला मोती/दूसरा कालू था
पहला बोदा/दूसरा चालू था
तभी सड़क पर आवाज आई
अबे कुत्ते साले
मोती ने मूड कर देखा
एक आदमी/किसी आदमी को
इन उपाधियों से अलंकृत कर रहा था
मोती बोला-यार कालू
लगता है/आदमी इमानदार और
स्वामिभक्त हो गया है
वो देख!वो किसे
कुत्ता कह रहा है
कालू बोला
क्या जमाना आ गया है
हमारा तो जीना हराम हो गया है
अरे!जिस आदमी को भी देखो
अब वही कुत्ता हो गया है
लगता है/इनका स्टैण्डर्ड बढ़ गया है
या फिर हमारा घट गया है
पहले आदमी खाता था कसमे
हमारी स्वामी भक्ति कि
आज हमारे नाम की
गाली क्यों खा रहा है
आदमी ही आदमी को
कुत्ता बतला रहा है
मोती बोला/सुन-सुन
ये आदमी का बहुत बड़ा मंत्र है
ये इनका हमारे कुत्ता समाज को
सीधा-सीधा बिगाड़ने का षडयंत्र है
क्योंकि इन्होने अपने
समाज को तो भ्रष्ट लिया है
अब हमारे समाज को भी
भ्रष्ट करने आ रहे हैं,
इसलिए आदमी-आदमी को
कुत्ता-कुत्ता कहके चिल्ला रहे हैं
कालू बोला-क्या आदमी ने
झूठ,प्रपंच, गद्दारी, चोरी,दहेज़,हत्या
खून, बलात्कार, डकैती,दुनियादारी
से मुंह मोड़ लिया है
फिर कैसे?फिर कैसे?
हमारे से नाता जोड़ लिया है
हम भी कुत्ते हैं आखिर
हमारा भी कोई ईमान है
ऐसा नही है कि सौ में से नब्बे बेईमान
फिर भी हम महान है
हमारे समाज में
गद्दार का कोई स्थान नही है
रिश्वतखोरी,भ्रष्टाचारी का
कोई सम्मान नही है
अरे! जिसको भी देखो
काठ का घडा हो गया है
क्या!आदमी भी हमारे से बड़ा हो गया है?
अरे!क्या!आदमी भी हमारे से बड़ा हो गया है?
कालू बोला-यार तू तो गजब के बोल-बोल लेता है
क्यूँ खामखा सबकी पोल खोल लेता देता है
तू तो बड़ा खोता हो गया है
लगता है साले तू भी नेता हो गया है,
मोती बोला-मुझे क्यों गाली देता है नेता बोलकर
आज मैंने अपना दर्द सुना दिया है दिल खोलकर
कुत्तों की बातें मुझ तक भी पहुच रही थी
आज मुझे अपने आदमी होने पर शरम आ रही थी
मै सोच रहा था/आज का आदमी कहाँ जा रहा है?
२२ वीं सदी के जेट युग में /या
नैतिकता के पतन के दल-दल में
जहाँ उसे कुत्ता-कहने पर
कुत्तों को एतराज है
क्या अब भी हमारे पास
थोडी बहुत शरम -हया-लाज है
एक कुत्ते ने,दुसरे की लाश खायी
ये तो देखा था
आज का आदमी जिन्दा आदमी को खा रहा है
फिर भी अपने आपने आदमी होने का ढोल बजा रहा है
आज जिसको भी देखो उसका मुंह
अपनों के खून से सना है
मैं सोच रहा था
हाँ! मै सोच रहा था
क्या यही आदमी/क्या यही आदमी
आने वाली सदी के लिए बना है?
आने वाली सदी के लिए बना है?
आपका
शिल्पकार
बहुत ही तीखा...अन्दर तक कचोटता व्यंग्य...
नैतिकता के पतन के दल-दल में
जहाँ उसे कुत्ता-कहने पर
कुत्तों को एतराज है
क्या अब भी हमारे पास
थोडी बहुत शरम -हया-लाज है
बढ़िया, ललित जी मगर आपने कुछ कम आंक लिया, सौ में से नब्बे नहीं निन्यानब्बे !
ललित भाई,
ये कुत्ता-सम्मेलन बढ़िया है...किसी इंसान ने तो नहीं काट लिया था इनमें से किसी एक को और वहीं से वायरस फैल रहा हो...
जय हिंद...
"लगता है/इनका स्टैण्डर्ड बढ़ गया है
या फिर हमारा घट गया है"
बहुत खूब!
सही कह रहे है आप फिर भी है मेरा देश महान ...
ये तो कथा कविता हो गई। बधाई!
बहुत लाजवाब और सटीक व्यंगात्मक कविता, शुभकामनाएं.
रामराम.
ललित जी,
आपने भी क्या जबरदस्त व्यंगात्मक कविता कर डारी...
बहुत खूब..
koi tulanaa nahiin hai dono me