तलाशता हुँ
तुम्हे नित्य
सड़क पर
आती जाती बसों में
अपने गंतव्य की ओर जा रहे
यात्रियों की भीड़ में
जब कोई बस आती हुई
दिखाई देती है दूर से
तुम्हे देखने चढ़ जाता हूँ
ऊँचे टीले पर
पहाडी टेकरी पर
फिर एक बार
सवारियों के बीच
तुम्हें तलाशता हूँ
कुछ समय बाद
दूसरी बस आती है
तुम्हे लिए बिना
मैं उसे जाते हुए देखता हूँ
फिर उसके आने की
प्रतीक्षा करता हूँ
जब से तुम गई हो
नित्य यही होता है
बस आती है
और चली जाती है
मैं इंतजार करता हूँ
हाथ में लिए हुए
सुखा गुलाब का फूल
जो लाया था उस दिन
तुम्हारे जन्म दिन पर
तब से आज तक
फिर नहीं आया
तुम्हारा जन्म दिवस
मैं तुम्हारे लौट आने की
प्रतीक्षा में खड़ा हूँ
वहीं पर
उस टेकरी पर
आती जाती बसों को
देखते हुए.
रोज की तरह
जन्म दिन की
मुबारकबाद देने के लिए
आपका
शिल्पकार
तुम्हे देखने चढ़ जाता हूँ
ऊँचे टीले पर
पहाडी टेकरी पर
फिर एक बार
सवारियों के बीच
तुम्हें तलाशता हूँ
---क्या बात कह गये...सबने अहसासा है इसे!!
इंतज़ार को बहुत ही खूबसूरती से प्रदर्शित किया है आपने....
बेहतरीन भावों के साथ खूबसूरत रचना......
किसी प्रिय का विछोह और तलाश ऐसे ही होते हैं। सुंदर कविता।
ललित बाबू ,ये मौसम का असर है लगता है,उधर विवेक दस साल बाद कविता कर रहे हैं इधर तुम्हारा भी मूड गज़ब ढा रहा है,लगता है कोई एन्टी रोमांटिक वैक्सीन लगवाना ही पड़ेगा।
ललित जी, बहुत सुंदर भाव। इतने प्यार से अगर कोई हमें सात समंदर पार से भी बुलाता, तो मैं दौड़ा चला जाता।
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क्या धरती की सारी कन्याएँ शुक्र की एजेंट हैं?
आप नहीं बता सकते कि पानी ठंडा है अथवा गरम?
निहायत ही खूबसूरत रचना बहुत शुभकामनाएं.
रामराम.
ललित जी
इन्तिज़ार के लम्हों को बिलकुल तस्वीर नुमा कविता का आपने बेहतरीन जामा पहनाया है......!
बहुत
सुन्दर पंक्तियाँ
कब आओगे??????????
तुम तक जाती है मेरी हर निगाहें, जाने क्यों
जालिम आवाज़ ही टकरा कर लौट आती है।
मैं Udan Tashtari जी से सहमत हूं
हम..सबने अहसासा है इसे!!
सुखा गुलाब का फूल
जो लाया था उस दिन
तुम्हारे जन्म दिन पर
तब से आज तक
फिर नहीं आया
तुम्हारा जन्म दिवस
मैं तुम्हारे लौट आने की
प्रतीक्षा में खड़ा हूँ
वहीं पर
उस टेकरी पर
आती जाती बसों को
देखते हुए.
रोज की तरह
जन्म दिन की
मुबारकबाद देने के लिए
सुन्दर और मार्मिक भाव बिखेरे है आपकी कविता ने ललित जी !
बहुत बडिया भावमय रचना है शुभकामनायें
बस आती है
और चली जाती है
मैं इंतजार करता हूँ
हाथ में लिए हुए
सुखा गुलाब का फूल
बहुत सुन्दर एहसास की कविता और भाव्
bahut khoobsurat kavita hai....badhaai
ललित भाई,
बस और वो... दोनों के लिए इतनी दिल पर नहीं लगानी चाहिए...एक जाती है...दूसरी आ जाती है...
जय हिंद...
मैं तुम्हारे लौट आने की
प्रतीक्षा में खड़ा हूँ
Sir jI, yahan to khade-khade mere paav bhar gaye hai, lekin fir bhi khade hain
bahut achchi lagi aapki ye rachna......
गहरे एहसास को दिल में ले कर लिखी गई भावपूर्ण रचना
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