एक आशा का दीप जला गए जाते-जाते
सोए हुए थे लोग जगा गए जाते-जाते
दबे हुए अरमानों के बीहड़ अन्धकार में
किरण आशा की दिखा गए जाते-जाते
रहनुमा होने का भरम देते थे लोग हमेशा
उनकी असलियत दिखा गए जाते-जाते
जिन दुखियों के आंसू पोंछने कोई ना था
वो उनको अपना बना गए जाते-जाते
जिनकी पेशानी पे थी चिंता की गहरी लकीरें
होठों पे उनके तब्बसुम बसा गए जाते-जाते
जहाँ जख्मो से भरी मानवता कराहती थी
कारसाज थे मरहम लगा गए जाते-जाते
आपका
शिल्पकार
बेहतरीन भाई..
रहनुमा होने का भरम देते थे लोग हमेशा
उनकी असलियत दिखा गए जाते-जाते
उम्दा प्रस्तुति!!
प्रभाष जोशी मरे नहीं, प्रभाष जोशी कभी मरते नहीं...
विचार बन कर सदा रहते हैं हमारे साथ...
जय हिंद...