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स्वागत है आपका

गुगल बाबा

इंडी ब्लागर

 

कब आओगे??????????

तलाशता हुँ 
तुम्हे नित्य
सड़क पर
आती जाती बसों में
अपने गंतव्य की ओर जा रहे
यात्रियों की भीड़ में
जब कोई बस आती हुई 
दिखाई देती है दूर से
तुम्हे देखने चढ़ जाता हूँ
ऊँचे टीले पर
पहाडी टेकरी पर
फिर एक बार 
सवारियों के बीच 
तुम्हें तलाशता हूँ
कुछ समय बाद 
दूसरी बस आती है
तुम्हे लिए बिना
मैं उसे जाते हुए देखता हूँ
फिर उसके आने की
प्रतीक्षा करता हूँ
जब से तुम गई हो
नित्य यही होता है
बस आती है 
और चली जाती है
मैं इंतजार करता हूँ
हाथ में लिए हुए 
सुखा गुलाब का फूल
जो लाया था उस दिन 
तुम्हारे जन्म दिन पर
तब से आज तक 
फिर नहीं आया 
तुम्हारा जन्म दिवस
मैं तुम्हारे लौट आने की
प्रतीक्षा में खड़ा हूँ 
वहीं पर 
उस टेकरी पर
आती जाती बसों को 
देखते हुए.
रोज की तरह 
जन्म दिन की 
मुबारकबाद देने के लिए 

आपका 
शिल्पकार

Comments :

17 टिप्पणियाँ to “कब आओगे??????????”
Udan Tashtari ने कहा…
on 

तुम्हे देखने चढ़ जाता हूँ
ऊँचे टीले पर
पहाडी टेकरी पर
फिर एक बार
सवारियों के बीच
तुम्हें तलाशता हूँ


---क्या बात कह गये...सबने अहसासा है इसे!!

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) ने कहा…
on 

इंतज़ार को बहुत ही खूबसूरती से प्रदर्शित किया है आपने....


बेहतरीन भावों के साथ खूबसूरत रचना......

दिनेशराय द्विवेदी ने कहा…
on 

किसी प्रिय का विछोह और तलाश ऐसे ही होते हैं। सुंदर कविता।

Anil Pusadkar ने कहा…
on 

ललित बाबू ,ये मौसम का असर है लगता है,उधर विवेक दस साल बाद कविता कर रहे हैं इधर तुम्हारा भी मूड गज़ब ढा रहा है,लगता है कोई एन्टी रोमांटिक वैक्सीन लगवाना ही पड़ेगा।

Dr. Zakir Ali Rajnish ने कहा…
on 

ललित जी, बहुत सुंदर भाव। इतने प्यार से अगर कोई हमें सात समंदर पार से भी बुलाता, तो मैं दौड़ा चला जाता।

------------------
क्या धरती की सारी कन्याएँ शुक्र की एजेंट हैं?
आप नहीं बता सकते कि पानी ठंडा है अथवा गरम?

ताऊ रामपुरिया ने कहा…
on 

निहायत ही खूबसूरत रचना बहुत शुभकामनाएं.

रामराम.

Pawan Kumar ने कहा…
on 

ललित जी
इन्तिज़ार के लम्हों को बिलकुल तस्वीर नुमा कविता का आपने बेहतरीन जामा पहनाया है......!
बहुत
सुन्दर पंक्तियाँ

मनोज कुमार ने कहा…
on 

कब आओगे??????????
तुम तक जाती है मेरी हर निगाहें, जाने क्यों
जालिम आवाज़ ही टकरा कर लौट आती है।

मनोज कुमार ने कहा…
on 

मैं Udan Tashtari जी से सहमत हूं
हम..सबने अहसासा है इसे!!

पी.सी.गोदियाल "परचेत" ने कहा…
on 

सुखा गुलाब का फूल

जो लाया था उस दिन

तुम्हारे जन्म दिन पर

तब से आज तक

फिर नहीं आया

तुम्हारा जन्म दिवस

मैं तुम्हारे लौट आने की

प्रतीक्षा में खड़ा हूँ

वहीं पर

उस टेकरी पर

आती जाती बसों को

देखते हुए.

रोज की तरह

जन्म दिन की

मुबारकबाद देने के लिए

सुन्दर और मार्मिक भाव बिखेरे है आपकी कविता ने ललित जी !

निर्मला कपिला ने कहा…
on 

बहुत बडिया भावमय रचना है शुभकामनायें

M VERMA ने कहा…
on 

बस आती है
और चली जाती है
मैं इंतजार करता हूँ
हाथ में लिए हुए
सुखा गुलाब का फूल
बहुत सुन्दर एहसास की कविता और भाव्

शेफाली पाण्डे ने कहा…
on 

bahut khoobsurat kavita hai....badhaai

Khushdeep Sehgal ने कहा…
on 

ललित भाई,
बस और वो... दोनों के लिए इतनी दिल पर नहीं लगानी चाहिए...एक जाती है...दूसरी आ जाती है...

जय हिंद...

Unknown ने कहा…
on 

मैं तुम्हारे लौट आने की
प्रतीक्षा में खड़ा हूँ
Sir jI, yahan to khade-khade mere paav bhar gaye hai, lekin fir bhi khade hain
bahut achchi lagi aapki ye rachna......

राजीव तनेजा ने कहा…
on 

गहरे एहसास को दिल में ले कर लिखी गई भावपूर्ण रचना

GK Khoj ने कहा…
on 

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